Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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८८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय
श्री पारसमल 'प्रसून' संस्मरण : विष अमृत हो गया
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गौरा, लम्बा, पतला, शुभ्रवस्त्रावृत सुभग बदन, आँखों में विहंसती प्रभा, मुखपर मंद मृदु मुस्कान, वाणी में मधुरिमा का अक्षय कोष. इस कोष में छुपा था विष को अमृत में परिवर्तित करने वाला आत्मा-श्रीहजारीमलजी महाराज. एक शब्द में कहें तो सच्चे सन्त. सरलता की प्रतिमूर्ति. कारुण्य एवं वात्सल्य के साक्षात् सिन्धु. जिस किसी ने एक बार भी उनका पावन मनभावन सुदर्शन किया, वह भला क्या पूज्यप्रवर के मुख पर प्रतिक्षण खेलने वाली मंद मधुरिमा को कभी विस्मृत कर सकेगा? कभी नहीं. पूज्य गुरुदेव की मधुर अमृतोपम वाणी तो आज भी शतसहस्र भावुक भक्तों के हृदय को उल्लसित कर रही है. गुरुदेव में स्फटिक मणि की भांति विमल ज्ञान के साथ गंगा-जल से भी विशेष निर्मल आचरण का कंचन-मणि का सुसंयोग था. उनका आदर्श जीवन आज भी हमारा पथप्रदर्शक है. उनके जीवन-चित्रपट के के दिव्य दृश्य कभी भी अदृश्य नहीं होंगे. गुरुदेव क्षमा-शान्ति के सागर थे. उनके संपर्क में आकर अनेक पाषाण-हुदव भी द्रवित हो गये. उनके संस्मरण की एक झाँकी यहाँ प्रस्तुत है. परम सौभाग्य से पूज्य गुरुदेव का सं० २००५ का बर्षावास हमारे छोटे-से ग्राम भोपालगढ़ में हुआ था. उस समय विद्यालय के प्रधान अध्यापक के रूप में श्री बटुक जी नियुक्त थे. वे स्वभाव के कठोर थे. जो बात एक बार कह दी उसको उसी रूप में करवा लेना उनके जीवन की उल्लेखनीय विशेषता थी. जब उनकी क्रोध से तनी हुई भृकुटि देखते तो हम विद्यार्थी तो क्या, ग्रामवासी भी भयभीत हो जाते थे. प्रसंग का स्मरण नहीं है. एक बार उन्होंने किसी समस्या को लेकर विद्यालय-हॉल के सामने भूख हड़ताल कर दी. सारे ग्राम में खबर फैल गई, पर्याप्त प्रयत्न इस बात के लिये किये गये कि वे किसी प्रकार अपनी भूख हड़ताल स्थगित कर दें. पर सब प्रयत्न विफल सिद्ध हो चुके थे. दो दिन बीत गये थे. विद्यालय के इतिहास में यह एक प्रकार की अभूतपूर्व घटना थी. अध्यापक जी ने घोषित कर दिया था कि यह ब्राह्मण-शरीर तो अब प्राण तज कर ही उठेगा. स्थिति लाइलाज हो गई थी. पूज्यप्रवर का ध्यान इस ओर आकर्षित हुए बिना न रहा. स्वामी जी ने अत्यंत स्नेहपूर्वक अध्यापक जी को एकांत में बुलाकर समझाया. कुछ ही मिनट के बाद स्वामी जी म. से वार्ता करके वे बाहर आये तो देखा-उनके चेहरे पर प्रसन्नता की कान्ति परिव्याप्त थी. वे वैर भूल गये. क्रोधी चेहरे पर शान्ति व प्रसन्नता की लहरें चमकने लगीं. उनके नेत्र पश्चात्ताप से साश्रु हो रहे थे. उनकी आँखों से गंगा-जमुना की अविरल धारा प्रवाहित हो रही थी. ग्रामवासियों के मन में जो आशंका व अशान्ति छाई हुई थी वह क्षण मात्र में ही मिट गई और स्वामी जी म० ने समग्र ग्रामवासियों की श्रद्धा प्राप्त की. प्रेम व शान्ति का यह बोलता प्रत्यक्ष जादू था. प्यार के समक्ष क्रोध की पराजय थी. वातावरण में नया आनन्द और उल्लास था. मानवमेदिनी में सर्वत्र चर्चा थी कि इस अनोखी घटना ने तो चंडकौशिक व भगवान महावीर की घटना का स्मरण करा दिया है. फिर तो जब तक गुरुदेव विराजे बटुक जी प्रतिदिन मुनिश्री के प्रवचनों का लाभ लेते रहे. उन्होंने अनेक बार अनेकों से इस बात को दुहराया कि स्वामी जी मेरे जीवन के परम निर्माता हैं. मैं इनके उपकार को जीवन की आखरी घड़ी तक नहीं भूल सकता. तो ऐसे थे हमारे परम पूज्य गुरुदेव श्रीहजारीमलजी म०. उनके पवित्र परिचय से विष भी अमृत में परिणत हो गया. उस दिव्य आत्मा को मैं अपनी श्रद्धा के पुष्प अर्पित कर अपने को कृतकृत्य अनुभव करता हूँ.
YORY
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