Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
MMMMMMMMMMWWWXRMERWHEWINE
१८८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय सूची दे दी है. इसके बाद एक एक का विवरण लिखा गया है. समाप्ति में प्रथम प्रतीत होता है कि इस ग्रंथ का संस्कृत नाम दिया है जिस पर हरताल लगा दी गई है. उसका कारण यह है कि यह प्रति विरोधी ने लिखी थी. और लुंका के नाम का संस्कृत रूप लुपक का निर्देश उसमें किया गया है. प्रतीत होता है कि जब यह किसी लुका के अनुयायी के पास आई तब उसने लुंपक नाम के ऊपर हरताल लगा दी. साथ ही संस्कृत नाम के ऊपर भी हरताल लगा दी. फिर भी जो पढ़ा जाता है वह इस प्रकार हैइति श्री लुपकेन कृताष्टपंचाश....त...विचारश्च. लुकाना सद्दहिया अनइ लुकाना करिया अठावन बोल अनइ तेहनु विचार लिदिउ छइ. शुभं भवतु. यह प्रति पत्र १५ की प्रथम अर्ध बाजू में समाप्त होती है किन्तु उसके बाद ५४ बोल की एक सूची लिखी गई है और प्रारम्भ में प्रश्न किया गया है कि इन ५४ बातों का मूल आगम में कहां है ? इस सूची में तत्काल के आचार और विचार की ऐसी बातों का संग्रह किया गया है जो मूल आगमों में नहीं मिलती हैं, किन्तु उस काल में जैन समाज में प्रचलित हो गई थीं और जिनके विषय में लोंका और उनके अनुयायी प्रश्न उठाते होंगे. इस प्रति को मुद्रित करने का विचार है, अतएव विशेष विवरण मुद्रण के समय दिया जायगा.
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org