Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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विभिन्न लेखक : संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ : १२३
म्हारि भाव आंजलि
परमपूजनिक महाभागवान श्रीहजारीमलजी महाराज सा० म्हारी परम्परा सु गुरु होतां छतां उण उत्तम पुरुषों ने परम्परा गुरु सम्बन्ध सुं अलग राख ने देखतां छतां भी वां निर्मल चारितवान पुरुषां ने मानतो झुकतौ लुलतो म्हांरो मन उणां रो दास हो गयो.
बड़ा सरल स्वभावी, भदरीक आत्मा श्रीहजारीमलजी म० सा० रा दरसण रो सौभाग म्हाने घणीवार मिलतो रयो हो. स्वामीजी० ० सा० रो बी म्हारे उपरे घणो उपकार हो.
असातारो उदो संसार में सबां के लारे लागोडो है. हूं परम पवित्तर आतमा री सहण सगती री कांई तारीफ करूँ. घोर सुघोर असता रो उदो होत छतां की वे षणा मजबूत रहता हा म्हें उणारी सहमती निहाल विहान घणो अयो करतो. करम-सिद्धांत पर वारी घणी अटूट सरधा ही.
म्हें आपसू घणी वार ठाणापति विराजण री वीणती करी. पण वां रो साहस अटूट हो. ठाणापति विराजण री वीणती सिकारी कोनी, वे एक आ हीज कहता के ठाणापति रेवण सू' गोडा थाक जावे. म्हारो बस चालसी जठा तक ठाणापति रेवण रो मन कोनी. इण तरह सू स्वर्गवास पेली भी घणी वार वीणंती करी ही.
"चारितवान निरमल आत्मा रो भव भव में सरणो होइजो" आ भावना भातां म्हारे हिरदे में पूज गुरुदेव री खामी घणी खटके है. वारी पवित्तर आतमां ने हूं बार-बार म्हांरी भाव-भरी आंजली अरपण करूं हूं.
सेट श्रीमोहनमलजी चोरडिया
स्वामी श्रीहजारीमलजी म०
पूज्यश्री हजारीमलजी म० के लिये 'स्वामीजी' विशेषण योग्य था. वे वस्तुतः समाज के स्वामी ही थे. स्वामित्व का अधिकार वहाँ शोभित होता है जहाँ सरलता होती है. उनमें जितनी सरलता और विमलता थी वह और वैसी सरल आत्मा के आज कहीं खोजे भी दर्शन नहीं होते हैं. जब-जब मुझे उनकी स्मृति आती है तो उनके साथ बीते बाल्यकालीन स्वप्नचित्र आंखों में तैर जाते हैं. मस्तक श्रद्धा से झुक झुक जाता है.
आदरणीय श्री हजारीमलजी म० मेरे कुलगुरु थे परन्तु कुलगुरु के ममत्वभाव से ऊपर उठकर भी एक अपरिचित मुनि की पंक्ति में खड़े करके अनेक बार मेरे तर्कशील मस्तिष्क ने उन्हें जांचना तथा परखना चाहा. तब भी उनकी सरलता ने मेरे हृदय की भक्ति एवं स्नेह को ही प्राप्त किया है.
आज उनकी माटी की काया हमारे मध्य नहीं है परन्तु मैं ऐसा मानता हूं कि उनकी दृढ़ चरित्रनिष्ठा, प्रबल करुणा और निश्चल निष्कपट हृदय हमारे रक्तागुओं में प्रवेश कर जाय तो हम धन्य हो सकते हैं. हम में धन्यता उनके गुणों को स्मरण करने पर भी प्राप्त हो जाय तो इससे बढ़कर हमारा सौभाग्य क्या हो सकता है ?
मेरा सन्तार्पणभाव – मुनि श्रीहजारीमलजी महाराज जैसे सन्तों के लिए अर्पित है.
श्रीधानन्दराजजी सुराणा
मेरे परम्परा गुरु |
पूज्य गुरुदेव श्री हजारीमलजी म मेरो पैत्रिक परम्परा से गुरु रहे हैं. उनमें स्नेह सौजन्य आदि कुछ ऐसे गुण थे जिन्होंने मुझे एकान्त श्रद्धावादी बना दिया है. वे हमारे परम्परा से गुरु तो थे ही, सेवा और भक्ति केन्द्र भी बन गये थे. मुन्शी श्रीघेवरचन्द्रजी पारख
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