Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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११२ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय
महाराज चढ़े गज-रथ तुरियां हय गय रथ पायक-सुखदायक । नयन-कमल हरसत ठरिया ।महा०॥
खूब बरात बनी-व्यावन की । घोर घटा उमही झरियां ॥महा०॥ पृ० २२१ जहाँ तात्त्विक विवेचन किया गया है वहाँ पारिभाषिक शब्दों का बाहुल्य है. ऐसे स्थल जैन-दर्शन से अपरिचित व्यक्तियों के लिए अवश्य दुर्बोध हो गये हैं पर जिसे जैन-दर्शन का थोड़ा-बहुत भी ज्ञान है, वह रस लिए विना नहीं रहेगा. अस्सी प्रतिशत से अधिक शब्द राजस्थानी और हिन्दी के हैं. कहीं-कहीं प्राकृत के वाक्यांश भी प्रयुक्त हुए हैं जिनसे सांस्कृतिक वातावरण के निर्माण में सहायता मिली है. जैसे-'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया' (पृ० ३२५). कवि की अभिव्यक्ति प्रतीकात्मक कम, अभिधात्मक अधिक है, यही कारण है कि जगह-जगह कवित्व में बाधा पहुँची है. यहाँ कबीर की तरह चमत्कारपूर्ण और विरोधमूलक संख्यात्मक या सम्बन्धात्मक प्रतीकों का प्रयोग नहीं हुआ है. केवल एक जगह ऐसे संकेत मिले हैं(क) संख्यात्मक प्रतीक
पांचू' मेली रे मोकली, छहुँ री खबर न काय ।
सातां सेती रे लग रह्यो, पडूयो आठ मद माय ॥ (ख) वर्ण प्रतीक
पापां सू परिचय घणो, 'हवो रहे रे हजूर ।
ल,५ ले लिव लागी रही, ददो दिल सूदूर ॥ पृ० १६३ यद्यपि अलंकारों की ओर कवि का झुकाव अधिक नहीं रहा तथापि भावों को मधुर से मधुरतर और स्पष्ट से स्पष्तर बनाने के लिए यथाप्रसंग अलंकारों का प्रयोग किया गया है. सादृश्यमूलक अलंकारों का प्रयोग ही अधिक हुआ है. इनमें भी उपमा और रूपक ही कवि को विशेष प्रिय रहे हैं. उपमानों के चुनाव में कवि विशेष सजग रहा है. उसकी दृष्टि केवल मात्र रूढ़िबद्धता या शास्त्रीय ज्ञान में बँधकर नहीं रही. इससे ऊपर उठकर भी उसने देखा है. लोकजीवन और लोक-मानस का गहन अध्ययन और सूक्ष्म निरीक्षण कवि द्वारा प्रयुक्त उपमानों से झांकता प्रतीत होता है. शास्त्रीय और किताबी ज्ञान लोक-संस्कृति से पीछे छूट गया है. यहाँ दोनों के कतिपय उदाहरण दिये जा रहे हैं(क) शास्त्रीय रूढिबद्ध उपमानः
(१) कुगुरु तो कालो नागज मरिखा (१२४-११) (२) आयु घटती जाय छे, जिम अंजली नो पाणी रे (१३१-१८) (३) जाया तो विण घडी रे छ मास (२११-३) (४) नेम कंवर रथ बेठा छाजे,
___ ग्रह नक्षत्र में जिम चन्द्र विराजे (२२२-३) (५) कुँवर लागे छ प्यारो,
उंबर फूल ज्यूं दुलभ हमारो हो (३५६-१)
१. पाँच इन्द्रियाँ : श्रोनेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, स्पर्शेन्द्रिय. २. पटकाय: पृथ्वींकाय. अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, असकाय. ३. सात व्यसन : ४. हिंसा ५. ललना ६. दया
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