Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीदलसुखभाई मालवणिया, निदेशक, द० ला० भारतीय संस्कृति-विद्यामंदिर अहमदाबाद
लोकाशाह मत की दो पोथियाँ
[भारतवर्ष के सांस्कृतिक उत्क्रान्तिपूर्ण इतिहास में १५-१६वीं शताब्दी का विशिष्ट महत्त्व रहा है. कबीर, नानक, और तारणतरण स्वामी आदि महान् पुरुषों ने निर्गुण विचारधारा का प्रबलता से समर्थन किया है एवं सगुणोपासक समाज धर्म और पूजा के नाम पर फैले हुए अर्थहीन आडम्बरों पर प्रहार कर जनमानस को उबुद्ध किया है. श्रीमान् लोकाशाह भी इसी युग की उपलब्धि हैं. इसमें कोई सन्देह नहीं कि उनके मन में जैनधर्म की शुद्ध प्रभावना की बलवती भावना घर किये हुई थी और वे यह चाहते थे कि श्रमणसंस्कृति में आचारमूलक जो शैथिल्य प्रविष्ट हो गया है उसका उन्मूलन हो. यहाँ प्रश्न यह उपस्थित हो जाता है कि श्रीमान् लोकाशाह ने आदर्श मूलक सम्प्रदाय प्रारम्भ तो किया पर उनकी मौलिक विचारधारा क्या थी? वे संस्कार के रूप में समाज को क्या देना चाहते थे और उनका उच्चादर्श किस प्रकार और किस सीमा तक प्रतिस्फुटित हुआ ? एवं उनके परवर्ती विभिन्न आनुगामिकों ने उनके नाम पर किन सिद्धांतों का समर्थन करते हुए परिवर्तन परिवर्धन व परिशोधन किया ? इत्यादि तथ्य तिमिराच्छन्न हैं. प्रस्तुत निबंध इसी अनुसंधान में यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है. इसके पश्चात् भी अन्वेषण का क्षेत्र प्रशस्त होता रहे एवं अन्य किन्हीं विद्वानों को एतद्विषयक प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध हो तो वे अवश्य ही प्रकाश में लाएं ताकि यह अन्धकारपूर्ण युग आलोकित हो सके. इस सम्बन्ध में निम्न सामग्री भी दृष्टव्य है(१) सिद्धांत चौपई-मुनि लावण्यसमयकृत, रचनाकाल १५४३. (२) सिद्धांतसारोद्धार-कमलसंयम उपाध्यायप्रणीत. रचना-काल १५४४. (३) त्रयोदशवचन-पावचन्द्र सूरि ग्रथित, रचना सं० १६ वीं सदी के करीब. (४) सिद्धांतबोल संग्रह-लेखन काल : १५७१ (५) कुमतिविध्वंसन चौपई-हीरकलश गुंफित. रचनाकाल १६१७. (६) लोक-मतनिराकरण चौपई-सुमतिकीर्ति कृत. (७) प्रवचन-परीक्षा-धर्मसागरग्रथित रचनाकाल १६७५. (८) लुपकमत-तमोदिनकर चौपई. गुणविनयकृत. रचना : १६७५. (६) लोंकामत-स्वाध्याय-गजसागर. रचना : १७ वीं सदी. (१०) रूपचन्द मांडणि टीकम कृत. रचना : १६६६. (११) दया धर्म चौपई-भानुचन्द्र कृत. इन के अतिरिक्त तात्कालिक जैन ग्रन्थों की पट्टावलियों में लोकाशाह और तदनुयायियों के सम्बन्ध में भी कई उल्लेख उपलब्ध हैं जो समसामयिक स्थिति के अध्ययन में सहायक हो सकते हैं. पुरातन ज्ञानागारों में भी विद्वानों के स्मरणपत्र व स्फुट चर्चात्मक ग्रन्थों में इस विषय की चर्चा पाई जाती है.
-संपादक ]
Jaituti
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