Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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कमला जीजी : प्राचार्य प्रासकरणजी : १६३
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ने इसी पावन परम्परा का निर्वाह किया है. इस कारण आपकी रचनाओं में अनेक विशेषताएँ समाविष्ट हुई हैं. आपकी एक बड़ी विशेषता यह है कि आपने जो बारहमासे लिखे हैं वे रीतिकालीन परम्परा से बिलकुल भिन्न हैं. रीतिकालीन बारहमासों में नायक, नायिका, आलंबन और प्रकृतिवर्णन का घिसा-पिसा राग अलापा जाता था. नायिका प्रकृति के विभिन्न रूपों को देखकर नायक के अभाव में विकल होती है. किन्तु आसकरणजी ने ऋतु को वैराग्य व तपस्या के प्रेरणाप्रद भावों के प्रेरक के रूप में लिया है. यथाचैत्र मास मनुष्यों को चेतावनी देते हुए कहता है कि मनुष्य जन्म पाया है तो धर्म का आश्रय लो. यह भव व्यर्थ मत करो
चेत कहे तमे चेतज्यो, पायो नर अवतारो जी,
खरची लिजो धर्म ध्यान री, एसो जमारो म हारो जी। इसी प्रकार सावन भी सावधान करते हुए कहता है कि साघुओं की वाणी सुनो ताकि पाप व पुण्य को समझ सको और फिर कभी जन्म न लेना पड़े :---
सावण सुनो वाणी साध री, सुणियां पातक जासे जी । खबर पड़े जी पुण्य पाप री,
जिम गर्भावास न आसे जी । कलापक्ष यद्यपि आपका लक्ष्य पांडित्य का प्रदर्शन करना नहीं था, जिससे कि केशवदास की भांति आपकी हर पंक्ति में अलंकारों की भरमार होती. फिर भी आपकी रचनाओं में सहज ही अलंकारों की सुन्दर छटा अपनी झलक दिखा देती है. अनुप्रास का एक उदाहरण देखिये :
सहस अठारे साधजी समणि चालीस हजार,
एक लाख गुण सहज ऊपरे श्रावक हुआ व्रतधार । उपमालंकारों का बाहुल्य है :
प्रारीसा अपरा ऊपरी मेलिया, जेहवी पांसलिया जाणो रे। हाथ रो पंजो बड नो पानडो,
कुलथ फलियां सुखी अंगुलिया रे । आपकी रचनाओं में करुण, वीर, शृंगार तथा रौद्र आदि रसों का भी सुन्दर परिपाक हुआ है. जब नेमिनाथजी वैराग्य हो जाने पर राजुल को छोड़ जाते हैं तब वह करुण विलाप कर उठती है :
नेणां नीरज नाखती, जाणे तूट्यो मोत्यां नो हार,
मैं पाप किया भव पाछले, मोने तज गया नेम कुमार । शांत रस के उदित हो जाने पर हृदय में कैसी-कैसी भावनाएँ उठने लगती हैं, इसे आचार्यश्री ने बड़े मार्मिक रूप में दर्शाया है
काया माया कारमी, काचो एहनो संग रें लाल,
जातां रे बार लागे नहीं, जिम हलदी नो रंग लाल । तप और साधना के लिए कितना कष्ट और पीड़ा उठानी पड़ती है, यह हमें मुनि श्री द्वारा रचित गजसुकुमालचरित में देखने को मिलता है. गजसुकुमाल का ससुर उन्हें तप करते देखकर आगबबूला हो उठता है और उनके साथ कैसा
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