Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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१६० : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय
तप महिमा में:
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पूज्य श्री मोटा रायचन्द जी, पोहंच ज्यांरी छे भारी रे । ज्यारे प्रसादे गुण जोडीया, ओपने आसोज मझारी रे ।
रचनाकाल
आपका रचनाकाल वि० सं०१८४० से शुरु हुआ और अंत तक आप इसमें संलग्न रहे. मारवाड़ के ग्रंथागारों में आपकी विभिन्न विषयों पर लिखी हुई अनेक रचनाएँ उपलब्ध हुई हैं जिनका संकलन 'आसकरण-पदावली' के नाम से विद्वद्वर्य श्रीमधुकरमुनि कर रहे हैं. अभी भी अन्वेषण किया जा रहा है और आशा है शीघ्र ही वह प्रकाशित होकर पाठकों के हाथों में पहुँचेगा. आप बड़े ही कर्मठ व मनोयोगी संत थे. आपकी रचनाएँ भी अत्यन्त प्रेरणाप्रद हैं. दया, दान, विनय व तप आदि जैसे सरल से सरल व सगुण तथा निर्गुण पूजा जैसे कठिन से कठिन विषयों को भी आपने बड़े ही सरस व सुन्दर ढंग से समझाने का प्रयत्न किया है.
काव्यकला जैसा कि बतलाया जा चुका है, संवत् १८१२ में श्रीआसकरणजी का अपनी बहुमुखी प्रतिभाके साथ आविर्भाव हुआ. आसकरण जी का काव्यकाल हिन्दी का रीतिकाल था, जिसमें शृंगारपरक काव्यों के साथ-साथ भक्ति की धारा भी बही चली जा रही थी. सूर, तुलसी, मीरा आदि प्रसिद्ध भक्त कवि अपनी अमर काव्यरचना कर चुके थे. आसकरणजी की रचनाएँ भी भक्तिरस से ओतप्रोत हैं. आपकी रचनाओं में यदि एक ओर हम सूर, तुलसी का प्रभाव देखते हैं तो दूसरी और कबीर का प्रभाव भी स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है. रीतिकाल में उस समय दो धाराएँ प्रवहमान थीं. एक तो पुरातनवादी और दूसरी स्वच्छंदतावादी. प्रथम में तो शृंगार व नीति आदि का परम्पराबद्ध वर्णन होता था और दूसरी में इष्ट के प्रति प्रेम का सात्विक निरूपण. श्रीआसकरणजी के साहित्य में इन दोनों का बाहुल्य है. आपने अपनी रचनाओं के द्वारा जिस प्रकार अपने इष्टदेव की भक्ति की है उसी प्रकार मानव मात्र को धर्म नीति की भी भरसक शिक्षा दी है. आपकी सुप्रसिद्ध ढालें (नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, ऋषभदेव आदि २) उपास्य के प्रति अखण्ड भक्ति का परिचय देती हैं, उसी प्रकार विनय का महत्त्व, शील की महिमा, दान, तप आदि पर लिखी हुई रचनाएँ नीतिपूर्ण शिक्षा भी देती हैं. रचनाए आपने खण्डकाव्य और मुक्तक दोनों प्रकार की काव्यरचनाएँ की हैं, जिनमें से कतिपय इस प्रकार हैं(१) खण्डकाव्यश्रीजयमलजी म०, गजसुकुमाल, केशी गौतम, नमिराजजी, धन्नाजी, पार्श्वनाथजी, कालीरानी, मुनि जयघोष विजयघोष निषदकुमार, डोकरी, भरतजी की ऋद्धि, नेमिनाथजी. (२) मुक्तकजीव परिभ्रमण, तपमहिमा, स्तुति, साधुवंदना, सज्झाय, स्वर्ग आयुष्य के दसबोल, साधुसंगति, गुरुमहिमा, विनय का महत्त्व, तेरह काठिया, देवलोक का वर्णन, पर्युषण पर्व, शीलमहिमा, दान, संत, उपदेशीपद, काल का अविश्वास, तेरा कोई नहीं, कालगति, परनारी, गौतम को संदेश, तृष्णा, बारहमासा, निंदकइक्कीसी, भवपच्चीसी, सीख-मोहवरी, संसार की माया काची, सद्गुरु वाणी साची, पंचम आरे का सुख अपूर्ण, धर्म की दलाली, अष्टादश पाप, सामायिकव्रत होनहार, दृढ़प्रहारी, श्रमण भद्र. अपनी लेखनी से आपने अनेक विषयों को छुआ है जो कि उपरोक्त रचनाओं के नामकरण से ही स्पष्ट है. ढालों में
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