Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
米業業業染深举茶業深業落差
१२४ । मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय श्रद्धा-सुमन समर्पित तुमको अगरबत्ती जब से जलती है तभी से सुवास विकीर्ण करना प्रारम्भ करती है. अन्त तक सुवास देती है ! मुनिश्री अपने जीवन के प्रारम्भ से अन्त तक अपनी आत्मसाधना और समाज अभ्युदय के कार्यों की सुगन्ध से परिव्याप्त रहे, उन्होंने स्वसाधना और जनकल्याण के कार्य किए परन्तु जल में कमल बन कर, कमल प्रारम्भ से अन्त तक पानी में रहता है परन्तु कमल पर पानी की बूंद भी दिखाई पड़ती है ? नहीं ! स्वामीजी म० भी ठीक इसी प्रकार का साधु समाज में आदर्श जीवन व्यतीत कर अतीत हुये हैं. वह जीवन क्या है, जो संसार को प्रेम का धन न बाँट सके ? वह वक्ता और विचारक, क्या वक्ता और विचारक है जो सम्प्रदाय और व्यक्ति को समाज के प्रति केन्द्रित करने का प्रचार न करे ? स्वामीजी म. ने जीवन भर सर्वत्र प्रेम की दृष्टि की. शान्ति की पावनी गंगा बहाई. उनकी वात्सल्य भावना में जिसने भी स्नान किया वह समभव-साधना का अमर पुजारी बना. आज मैं, चतुर्दिक देख रहा हूँ. वैसा महामानव मुझे कहीं दृष्टि पथ नहीं होरहा है. उनके संसार के लिये किये गये उपकार अमर हैं. इसलिये वे स्वयं भी अमर हैं. संसार उनका चिरऋणी है. मैं, उनके उपकारी जीवन और गुणों के प्रति श्रद्धा अर्पित करते हुए अपने श्रद्धाशील हृदय में सुख अनुभव करता हूँ.
श्रीमूल मुनिजी म.
वह युगपुरुष महान् उस युग पुरुष के निस्पृह जीवन की परिक्रमा करने पर, मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ.--"युग-युग तक उनकी कीतिकथा, सहस्र-सहस्र कण्ठस्वरों से फूट कर उस पूज्य पुरुष तक पहुँचती रहेगी और वे अपनी सन्तजनोचित विशेषतावश उसे अस्वीकार ही करते रहेंगे !"
श्रीसोहनमुनिजी म.
जीवनधर्म के कुशल और यशस्वी कलाकार कलाविहीन जीवन, जीवन नहीं है. कलामय जीवन ही सच्चा और सफल जीवन है. वह जीवनकला कौन-सी है जो जीवन को धन्य, कृतकृत्य और सफल बना देती है ? इस सनातन प्रश्न का उत्तर जीवन के मर्मी शास्त्रकार एक ही वाक्य में इस प्रकार देते हैं :--
सव्वा कला धम्मकला जिणेइ. अर्थात् सभी कलाओं में धर्मकला सर्वश्रेष्ठ है. प्राकृत जीवन को संस्कृत बनाने के लिए 'कला' की आवश्यकता होती है और कलामय जीवन बनाने के लिए धर्म की आवश्यकता रहती है. पूज्य मुनि श्रीहजारीमलजी म.सा० निर्ग्रन्थ भिक्षु थे, ज्ञानी, त्यागी, तपस्वी थे; लेकिन सही अर्थ में वे थे जीवन-धर्म के यशस्वी और कुशल कलाकार. मैंने हजारों जन-मन को अपने जीवन-धर्म की कला से संस्कृत और पावन-पवित्र करते हुए उन्हें देखा है. जीवन-धर्म के यशस्वी और कुशल कलाकार पू० हजारीमलजी म० की पावन स्मृति आज भी धर्मजीवन की कला, जीवन का आदर्श प्रस्तुत कर जाती है और कलामय जीवन बनाने की प्रेरणा देती है.
श्री शान्तिलाल बनमाली शेठ
गरा
Jain Edu
www.jammelibrary.org