Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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विभिन्न लेखक : संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ : १२६
खामेइ, खामित्ता पुरत्थाहिमुहे संपलियं कणिसण्णे करयलपरिग्गहिअं सिरसावतं मत्थए अंजलि काऊण एवं बोल्लीअ-नमोथु अरिहंताण भगवन्ताण जाव संपत्ताण, नमो जिणाण जिअभयाण पुव्विं पि मए गुरुवरस्स अन्तिए सव्वे पाणाइवाए पण्यवाए मुसावाए अदिष्णादा मेहुणे परिग कोहे पेज्ने दोसे मारणे माया लोहे कलहे अन्भक्लाणे येणे परपरिवाए रइअरई मायामोसे मिच्छादंसणसल्ले पच्चक्खाए, इयाणि पि अहं सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव मिच्छादंसणस जावजी बाए पच्चस्वामि चविपि आहार जावज्जीवाए पञ्चश्लामि मण्डमलोवगरणे शरीरम्म व मगाइयमई वोसिरामि एवं संलेणा भूसणाभूसिए भत्तपाणपडिआइक्खिए कालमणवकखमाणो विहरइ हजारीमल्लो महप्पा. आलोकन्ते समाहिपते कालमासे कालं किच्या सम पक्षी हजारीमल्लो महाराज. महारायो बाली तह महर मीसीमलो दोणि वि मुनिवरेहिं वेयावच्चं कथं अगिलायमारोहि. एरिसं मरण जीवो गरुयपुण्णेहिं लहइ. तह एरिसाण महाग वेयावच्च पि अइपुण्णेहिं कीरइ जीवेण.
जत्थ वि भवन्तो अत्थि मज्झम्मि अरगुग्गहं कुणउत्ति मे पत्थणा अस्थि.
चिर नवीन है याद तुम्हारी
प्रणम्य !
आप मानवरूप में भी देवत्व के प्रतीक थे. पीड़ित मानवता के कल्याणार्थ आपका त्याग, उत्सर्ग व चिन्तन था.
आपका दिव्य संदेश, आपके सारगर्भित उपदेश, मानव मात्र का सदा सर्वदा मार्गदर्शन कर उसे जीवन में सफलता एवं श्रेष्ठता की ओर अग्रसर करते रहेंगे.
गुरुदेव !
यद्यपि अब आप हमारे मध्य नहीं हैं,
तथापि आपकी तेजस्वी मूरत,
उस पर अवतरित शान्ति एवं सौम्यभाव,
की झलक तथा आपकी विचक्षणता,
स्मृति रूप में सदा ही हमारे हृदय पटल पर चिरस्थायी रहेगी !
पूज्यतम !
इस तुच्छ दास की अन्तर्मन से अर्पित भावांजलि है !
श्रद्धेय पुरुष श्री रेखचन्द पारख
! आशीष दो.
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मुनि श्री चन्द्रजी 'भ्रमण'
वे हि हजारी मुनीश अहो ! अपना कर । जला कर ॥ दृढा कर ।
हर्षित हो मुनि हंस कला उर में जागरूक हो जगज्जाल को अहा ! री-ति, नीति, मर्याद, जिनेश्वर धर्म मन्मथ को मद मार पार करिके भव सागर || लब्ध- प्रतिष्ठ निज इष्ट पे पहुधारे जो पेखलो । जीवन सु-धन्य को नाम शुभ, आद्याक्षर में देखलो || संयमनिष्ठ विज्ञानगरिष्ठ, वरिष्ठ महा, निज इष्ट पियारे । शिष्ट अचार, विचार बलिष्ठ सु- लब्धप्रतिष्ठ, महामतिवारे । मिष्ठ गिरा, करणी उत्कृष्ट रु क्लिष्ट परीषह के सहनारे । वे हि हजारी मुनीश अहो ! कवि बाल कहे सुरलोक सिधारे । श्रीबाखाराम, कवि-किंकर'
नवीन समर्पण क्या ?
जो समर्पित हो चुके हैं, उन पुष्पों से अर्चन क्या ? जो भाव चरण में पहुँच चुके, उन भावों का अर्पण क्या ? खिले कुसुम, वहाँ मधुकर पहुँचे, आश्चर्यान्वित सर्जन क्या ? भास्कर चमका, कमल खिले तो, यह भारी परिवर्तन क्या ? त्रिधाराएँ मिलीं, तीर्थ का, नूतन फिर परिकल्पन क्या ? जहाँ समर्पित हृदय हुआ वहाँ, गुणगौरव का जल्पन क्या ? रत्नत्रय ही जीवन जिसका, उस मुनिवर का वर्णन क्या ? सहस्रगुणान्वित सम्त 'हजारी' 'कुमुद' नवीन समर्पण क्या? श्री सौभाग्य मुनि 'कुमुद'
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