Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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नरेन्द्र भानावत : प्रा० जयमल्लजी : व्यक्तित्व-कृतित्व : १४३
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प्रियतमा की अश्रुपूर्ण आंखें उसे संकल्प से डिगाना चाहती हैं.' किन्तु वह मोहपाश को तोड़ कर कर्त्तव्य-पथ पर बढ़ जाता है. यही 'प्राप्त्याशा' की स्थिति है. कभी-कभी संयम-धारण करने की भावना को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी अनुकूल बन जाती हैं. कृष्ण, नेमिनाथ को विवाह के सूत्र में बाँधने के लिए अथक प्रयत्न करते हैं. राजमती के साथ उनका (नेमिनाथ का) वाग्दान भी हो जाता है. यही नहीं, नेमिनाथ विवाह करने के लिए दूल्हा बन कर, बरात सजाकर, राजमती के प्रासाद तक भी चल देते हैं. पर अचानक परिस्थिति बदलती है और वे भोज के लिए बन्दी पशु-पक्षियों का कातर करुण क्रन्दन सुनकर तोरण से उल्टे पांव लौट दीक्षा धारण कर लेते हैं.२ संयम लेने के बाद केवल-ज्ञान प्राप्त होने तक की स्थिति प्राप्त्याशा' से लेकर 'नियताप्ति' तक की स्थिति है. 'नियताप्ति' तक पहुँचने के लिए साधक को कई प्रकार की कठिन परिस्थितियों (परीषहों) से गुजरना पड़ता है. यदि वह इन परिस्थितियों से वीर योद्धा की भाँति जूझ सकता है तो 'फलागम' निश्चित है. स्कंदक ऋषि की उनके बहनोई द्वारा ही चमड़ी उतरवाई गई पर वह तनिक भी विचलित नहीं हुए. उदाई राजा ने अपने पुत्र को राज्य न देकर भागिनेय केशी को राज्य दिया और प्रव्रज्या ली पर केशी ने मुनि उदाई को विषमिश्रित औषध देकर मरवा डाला, इस पर भी उदाई मुनि समभावी बने रहे.४ मेघकुमार ने अन्य मुनियों के पैरों की ठोकरें खाई, संताप भी हुआ पर पूर्वभव में हाथी की शशक बचाने की भावना ने उसे संयम में दृढ़ बना दिया. कार्तिक सेठ ने अपनी पीठ पर खीर की गरम-गरम थाल झेली. गजसुकुमाल ने खैर के खीरे मस्तक पर रखे जाने पर भी ध्यान न छोड़ा. ये ही वे बाधाएँ हैं जो साधक को कसौटी पर कसती हैं. जो इस परीक्षा में खरा उतर जाता है वह 'नियताप्ति' की स्थिति में पहुँच जाता है. इन कथाओं
१. मेधकुमार को उसको आठ रानियाँ रोकती हैं-जयवाणी पृ० ३७४-७५ २. भगवान् नेमिनाथ : पृ० २१७-२२८-जयवाणी ३. तीखी पासणा नी धार,
मस्तक ऊपर फार, सुकोमल साथ । त्वचा उतारी देहनी ए ॥२३॥ पग सुधी खाल, तो ही रह्या संयम मां लाल, सुकोमल साध!
ना केई सल घाल्यो नहीं ए ॥२४॥-जयवाणी : पृ० ३०८ ४. अटण करता आविया, वैद्य अकारज कीयो रे ।
विष मिश्रित वस्तु तिका, मुनिवर पात्र दीपो रे ॥३॥ निरदोषण जाणा थानक आय ने, रोग जावा औषध खायो रे ।
जहर प्रगट्यो वेदन हुई ऊजल, सही न जायो रे ॥४॥-जयवाणी:पृ० ३६० ५. कोई परठन जावेजी मातरो, रात तणे समय मांय जी,
किण री ठोकर लागवे, कोई ऊपर पड़ी जाय जी ॥ कोई लेवा जावेजी वांचणी, पग तले आगुली आय जी ।
पगनी रज पड़ साथ रे, अरति आई मन मांय जी।। मेघ० ॥२-जयवाणी: पृ० ३७६ ढाल १३ ६. ऊनी खीर परुसने, मोर ऊपर मूकी थाल ।
सेठ मोर फेर्या नहीं, जिन थाल सू उपड्या छाल रे ॥१२॥ कठिन परीषह सेठ सह्यो, जाणे अजयणा थाय ॥ रखे थाल हेठो पड़े रे, तो नानाजीव मार्या जाय रे ॥१३॥-जयवाणी पृ० ३६०-३६१ ७. मस्तक पाल बन्धी माटी की, मुनिवर समता रस भरिया ।
झग भगता खयर ना खीरा, मुनिवर ने शिर धरिया ।।४।। खदबद खीच तणी परे सीजे, तड़-तड़ नासा तूटे।। मुनिवर समता-भाव करी ने, लाभ अनंतो लूटे ॥५॥-जयवाणी पृ० ३४८
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