Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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विभिन्न लेखक : संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ : १०१ नहीं, किन्तु विराट् मानवता के उच्चत्तम पवित्र प्रतीक भी होते हैं, जिन पर हमारे देश को ही नहीं, वरन् सारे विश्व को ही गौरव की अनुभूति होना स्वाभाविक है.
ऐसे सन्त, जब अपनी जीवन लीला को समाप्त कर दिव्यत्व की ओर प्रयाण करते हैं, तो उनका स्थान रिक्त हो उठता है. सहज ही, एक न्यूनता का कटु अनुभव होता है. उनका स्थान सहज में भरा भी नहीं जा सकता है. हम केवल उन्हें अपनी श्रद्धांजलि के भावपुष्प समर्पित करने के अतिरिक्त कर ही क्या सकते हैं ?
न्यायमूर्ति श्री इन्द्रनाथ मोदी
परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते, स जातोयेन जातेन वाति वंशः समुन्नतिम्,
इस परिवर्तनशील संसार में कौन नहीं जन्म लेते हैं और मरते हैं ? किन्तु जन्म और जीवन उन्हीं का सफल है, जिन्होंने अपने वंश की प्रतिष्ठा में चार चांद लगाए, जाति के अभ्युत्थान में योगदान किया, कोई श्रेष्ठ कार्य करके जीवन में क्रान्ति की.
श्रद्धांजलि
विश्ववाटिका में नाना प्रकार के पुष्प खिलते हैं और अपना सौरभ दुनिया को लुटा कर मुरझा जाते हैं. ऐसे ही महान् पुरुष भी इस संसार में आते हैं और अपने सत्कृत्यों का सौरभ संसार में फैलाकर चले जाते हैं. जिस प्रकार मेघ दृष्टि करके चला जाता है, किन्तु पिछला वातावरण बहुत ही सुन्दर बना जाता है. सम्पूर्ण वसुन्धरा को हरीभरी बना देता है. महान् पुरुष विश्व में आते हैं और पथभ्रान्त जनों को सत्यपथ प्रदर्शित करके तथा भूतल को अपनी वाणी-सुधा से आप्लावित करके संसार से विदा हो जाते हैं. जन-जन के हृदय में सम्यक्ज्ञान का महान् प्रकाश फैलाकर जाते हैं.
मुनि श्रीहजारीमलजी स्वामी भी ऐसे ही एक महान् विशिष्ट सन्त थे. आपने निरन्तर ६४ वर्षों तक अप्रमत्त भाव से संयमसाधना में प्रगति करते हुए भारत के विभिन्न प्रदेशों में परिभ्रमण किया और अनेकों भव्यात्माओं को अपने उपदेशामृत का पान कराया.
आपके दर्शनों का सौभाग्य मुझे ब्यावर में प्राप्त हुआ था. आपका सौम्य चेहरा, भद्र स्वभाव, शान्त प्रकृति तथा वाणी का अनूठा प्रभाव सदा स्मरणीय है. आपकी दृष्टि में विलक्षण तेज और व्यक्तित्व में असाधारण आकर्षण था. ऐसे महापुरुष के चरणारविन्द में मैं, श्रद्धा के सुमन अर्पित कर कृतार्थता अनुभव करती हूँ.
सती श्री कुमवतीजी
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अभ्यर्थना और श्रद्धांजलि
महापुरुष, मुनि श्रीहजारीमलजी म० की पावन स्मृति में 'स्मृतिग्रंथ' प्रकाश में आ रहा है. मेरी निश्चित धारणा है कि वे गुणपूजा के पक्षकार थे जीवन पर्यन्त उन्होंने पंच महाव्रतों का दृढ़ता पूर्वक पालन किया था. चरित्रनिष्ठ महामुनि के जीवन की दिव्य प्रेरणाओं को आधार मानकर हम भी वर्गों में विभाजित वीतराग के अनुगामी गुण- पूजा व त्याग प्रतिष्ठा का श्रीगणेश करें. यही शुभ अभ्यर्थना करते हुए अपनी विनीत श्रद्धांजलि प्रस्तुत करता हूँ.
मुनि श्रीजनक विजयजी गणि
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