Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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विभिन्न लेखक : संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ : १०७ उनके निष्कपट सरल व ममतापूर्ण व्यवहार ने मेरे मन को जीत लिया. मैंने सुना है— 'बहुरत्ना वसुंधरा' आज उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मन यों कहने को विवश हो रहा है— 'बहुरत्ना मरुधरा' इस तरह मरुधरा के वे एक रत्न थे.
स्वर्गीय श्री हजारीमलजी म० हमारी गौरवमयी परम्परा के सन्त थे. उनके प्रति नये सिरे से क्या श्रद्धा व्यक्त करूँ ? मेरी श्रद्धा के पुष्प तो उनके पवित्र चरणों में पहले से चढ़ चुके थे. उनका समुज्ज्वल 'मंगलमय यश' स्मृतिग्रंथ से भी ज्यादा व्यापक व स्थायी है. फिर भी उनके सुयोग्य शिष्यरत्न श्रीमधुकरजी महाराज द्वारा श्रद्धास्वरूप स्मृतिग्रंथ संबन्धी जो उपक्रम किया जा रहा है, उसके प्रति भी मेरी हार्दिक शुभ कामना व शुभ भावना है.
प्रांतमंत्री श्री अम्बालालजी महाराज
सेयंवरो वा संवरो वा बुद्धो वा तह व अन्नो वा ! समभावभाविप्पा समुन 11
साधक श्वेताम्बर हो या दिगम्बर बौद्ध हो या वैष्णवादि जाति और वर्ग का प्रश्न नहीं है— हिन्दू, यवन, सिख, पारसी, ईसाई, ब्राह्मण अथवा क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र, किसी भी धर्म का अनुयायी क्यों न हो, जिसमें समभाव की साधना का योग चल रहा है - वह अवश्य ही मोक्ष को प्राप्त होगा.
समभावयोगी सन्त
समभाव सर्व सिद्धि का केन्द्र है. समभाव से जातिगत, धर्मगत, वर्गगत, सम्प्रदायगत और राष्ट्रगत, सभी प्रकार के संघर्ष और द्वंद्व समाप्त हो सकते हैं. मेरी निश्चित धारणा है कि इस से विश्व शान्ति का साम्राज्य स्थापित हो सकता है. मेरी यह शुभाशा है कि सभी वर्ग के लोग समभाव साधना के द्वारा जीवन का परम काम्य प्राप्त करें.
स्मृतिग्रन्थ के नायक, समभाव व योग-साधना के बल पर ही जीवन में श्रेष्ठता प्राप्त कर जन-जन वंद्य बने थे. मेरे श्रद्धा के नेत्रों में वे मुझे समभाव योगी ही दीख रहे हैं. शिवमस्तु सर्वजगतः !
घायायं श्रीविजयसमुद्रसूरिजी महाराज
मरुधरा की एक महान् विभूति
भारतीय जनता ऋषियों, महर्षियों, सन्तों, साधुओं का सम्मान सदैव करती आई है क्योंकि साधक का जीवन महान्, पवित्र, शीतल, शम, दम एवं उपशम भाव से परिपूर्ण होता है. वे अपने सहज सात्विक गुणों से अज्ञानी जीवों को मार्ग - दर्शन कराते रहते हैं.
आर्यावर्त के इतिहास को इन्हीं नव रत्नों पर विश्वास है और इन्हीं पर गर्व है. ऐसी महान विभूतियों द्वारा ही आर्यसंस्कृति को पोषण मिला और मिल रहा है. सत्य तो यह है कि भारतीय संस्कृति, धर्म और दर्शन का इतिहास सन्तों का ही इतिहास है. उन्हीं की इस सात्विक देन के कारण भारतवर्ष का स्थान विश्व में अद्वितीय माना जाता है.
आज जिस महापुरुष को श्रद्धांजलि अर्पण करने की भावना हो रही है, वे ऐसे ही उच्चकोटि के सन्त थे, जिन्होंने "मधुकर" मिश्री जैसे को समाज के लिए उपहार दिया है. स्थानकवासी समाज का इतिहास ऐसे एक दो नहीं, सैंकड़ों सन्तों के स्तुत्य जीवन और ज्ञान की अलौकिक प्रभा से भरा पड़ा है. उन्हीं महापुरुषों में से मुनिराज श्री हजारीमलजी महाराज थे. उन्होंने श्रमणसंघ के मंत्री पद का उत्तरदायित्व बड़ी खूबी से निभाया. "मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनाम्" यह आदर्श उनका जीवनव्यवहार बन गया था.
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