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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - चतुर्थ दशा AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAkkkkkkkkkkkk परिनिर्वापित - शिष्य को पूर्व पठित विषय कितना स्वायत्त है, यह जानना, अत्थणिज्जावए - अर्थनिर्यापकता - पूर्वापर आशय-संगति पूर्वक शिक्षा देना, उग्गहमइसंपया - अवग्रहमति संपदा, खिप्पं उगिण्हेइ - क्षिप्रमवगृह्णाति - शीघ्र अवगृहीत - स्वायत्त करना, धुवं - नित्य, दुद्धरं - विशेष बौद्धिक श्रम द्वारा ग्राह्य, अणिस्सियं - अनिश्रित - किसी अन्य साधना या हेतु के बिना सहज रूप से अर्थ को ग्रहण करना, आयं - आत्मानं - अपने आपको, विदाय - (विदित्वा) जानकर, वायं - वाद - परमत-खण्डन स्वमत स्थापन पूर्वक, पउंजित्ताप्रयोग करता है, परिसं - परिषद्, खेत्तं - क्षेत्र, वत्थु - वस्तु, बहुजणपाउग्गयाए - बहुजनप्रायोग्यतया - अनेक मुनियों के लिए शास्त्र-मर्यादानुरूप आवास योग्य, पडिलेहित्ता - ... बारीकी से पर्यवेक्षण कर, पाडिहारिय - प्रातिहारिक - प्रयोग कर वापस दिए जाने वाले, समाणइत्ता - समयानुरूप (अवसरानुरूप)कार्य करना, अहागुरु - यथागुरु-दीक्षा-ज्येष्ठ के प्रति यथारूप व्यवहार, संपूएत्ता - संपूजयिता - सम्यक् वंदन-व्यवहार, आदर-सत्कार करना।
भावार्थ - आयुष्मन् ! मैंने श्रवण किया है, परिनिर्वाण प्राप्त प्रभु महावीर ने इस प्रकार प्रतिपादित किया है - अरहन्त भगवंत के प्रवचन में उन द्वारा प्ररूपित तत्त्वविवेचन के अन्तर्गत स्थविर भगवंतों ने अष्टविध गणिसंपदा का कथन किया है।
अष्टविध गणिसंपदा कौन-कौनसी बतलाई गई है? अष्टविध गणिसंपदा का इस प्रकार विवेचन हुआ है
१. आचारसंपदा २. श्रुतसंपदा ३. शरीरसंपदा ४. वचनसंपदा ५. वाचनासंपदा ६. मतिसंपदा ७. प्रयोगमतिसंपदा ८. संग्रह परिज्ञा संपदा।
१. आचारसंपदा कैसी है? आचारसंपदा चार प्रकार की प्रतिपादित हुई है - (अ) संयम विषयक क्रियाओं में सदैव उपयोग रखना - जागरूकता पूर्वक वर्तन करना। (ब) किसी भी प्रकार का अहंकार या अभिमान न करना। (स) अप्रतिबंधविहरणशील रहना। । (द) दीक्षावृद्ध, ज्ञानवृद्ध आदि के प्रति सम्मान का भाव रखना - ये चार प्रकार की आचार संपदाएं हैं। २. श्रुतसंपदा कितनी कही गई हैं?
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