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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - षष्ठ दशा . kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk दर्शन प्रतिमा, तच्चा - तृतीय, देसावगासियं - देशावकाशिक, अहावरा - इसके बाद, एगराइयं - एकरात्रिक, वियडभोई - विकटभोजी - दिवाभोजी (रात्रि भोजन त्यागी), मउलिकडे - मुकुलिकृत - धौत वस्त्र की अबद्ध पट्टिका युक्त - खुली लांग वाला, रत्तिं - रात्रि में, परिमाणकडे - परिमाणकृत - नियत अब्रह्मचर्य सेवी, उक्कोसेणं - उत्कृष्ट - अधिकाधिक, राओवरायं - रात और दिन, पेसारंभे - संदेशवाहक आदि अन्यों से आरंभ कराना, उहिट्ठभत्ते - अपने लिए बनाए गए आहार का, खुरमुंडए - क्षुरमुण्डन - उस्तरे से मुण्डन, सिहाधारए - केशधारक (चोटी), आभट्ठस्स - आभाषितस्य - एक बार पूछने पर, समाभट्ठस्स - बार-बार पूछने पर, कप्पंति - कल्पता है, जाणं - जानता हूँ, लुत्तसिरए - केशों का लोच करता है, णवत्थे - नेपथ्य - मर्यादित वस्त्र, डोरे सहित मुखवस्त्रिका, रजोहरण आदि, फासेमाणे - स्पर्श करता हुआ, पालेमाणे - पालता हुआ, जुगमायाए - युग्यमात्रया - झूसरा जुवाड़ा प्रमाण - चार हाथ प्रमाण, दळूण - देखकर, उद्धटु - उठाकर, रीएजा - ईर्या समिति पूर्वक, तिरिच्छं - तिरछा, कट्ट - करके, परक्कमेजा - प्रयत्न करे, उज्जुयं - सीधा, गच्छेज्जा - जाए, णायए - ज्ञाति वर्ग - स्वजन संबंधी, वइत्तए - जाता है, अवोच्छिण्णे - अव्युच्छिन्न - नहीं टूटता, चाउलोदणे - तण्डुलोदन - पके हुए चावल - भात, पच्छाउत्ते - पश्चात्, भिलिंगसूवे - मूंग आदि की दाल, पुष्वाउत्ताईपूर्व पकाए हुए, गाहावइकुलं - गाथापति के घर में, पिंडवायपडियाए - भोजन-पान लेने आए हुए, दलयह - देता है, पडिमापडिवण्णए - प्रतिमाधारी, वत्तव्वं - वक्तव्यं - कहना चाहिए, जहण्णेणं - जघन्यतः - कम से कम, उद्दिष्टा - अमावस्या।
भावार्थ - प्रथम प्रतिमा - अब प्रथम उपासक प्रतिमा का वर्णन किया जा रहा है - प्रथम प्रतिमाधारी उपासक सर्वधर्मरुचि - श्रुत, चारित्र रूप धर्म में अभिरुचिशील होता है। किन्तु वह अनेक शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात विरमण, प्रत्याख्यान एवं प्रौषधोपवास आदि सम्यक् प्रस्थापित पूर्व - भलीभाँति धारण किए हुए नहीं होता। ___ यह उपासक की प्रथम दर्शन प्रतिमा है। - द्वितीय प्रतिमा - द्वितीय प्रतिमाधारी उपासक सर्वधर्माभिरुचिशील होता है, वह अनेक "शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपातादिविरमण, प्रत्याख्यान तथा पौषधोपवास आदि विधिवत् धारण किए हए होता है। किन्तु वह सामायिक तथा देशाव काशिक व्रत का भलीभाँति प्रतिपालक - पालनकता नहीं होता।
यह द्वितीय उपासक प्रतिमा है।
HEELHI
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