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विविध रूप में कार्यशील साधक
२. कई ऐसे होते हैं जो मान करते हैं किन्तु गण का कार्य नहीं करते। ३. कई ऐसे होते हैं जो गण का कार्य भी करते हैं और मान भी करते हैं। . . ४. कई ऐसे होते हैं जो न तो गणं का कार्य करते हैं तथा न मान ही करते हैं। २७३. चार प्रकार के (साधनाशील) पुरुष कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं :१. कई ऐसे होते हैं जो गण का संवर्धन एवं विकास करते हैं, किन्तु मान नहीं करते। २. कई ऐसे होते हैं जो मान करते हैं, किन्तु गण का संवर्धन एवं विकास नहीं करते। ३. कई ऐसे होते हैं जो गण का संवर्धन एवं विकास भी करते हैं और मान भी करते हैं।
४. कई ऐसे होते हैं जो न तो गण का संवर्धन एवं विकास करते हैं तथा न मान ही करते हैं।
२७४. चार प्रकार के (साधनाशील) पुरुष परिज्ञापित हुए हैं। वे इस प्रकार हैं :१. कई ऐसे होते हैं जो गण की शोभा - प्रतिष्ठा बढाते हैं, किन्तु मान नहीं करते। २. कई ऐसे होते हैं जो मान करते हैं किन्तु गण की शोभा - प्रतिष्ठा नहीं बढाते। ३. कई ऐसे होते हैं जो गण की शोभा - प्रतिष्ठा भी बढाते हैं और मान भी करते हैं। ४. कई ऐसे होते हैं जो न तो गण की शोभा - प्रतिष्ठा बढाते हैं तथा न मान ही करते हैं। २७५. चार प्रकार के (साधनाशील) पुरुष अभिहित हुए हैं। वे इस प्रकार हैं :१. कई ऐसे होते हैं जो गण को विशुद्ध बनाए रखने वाले होते हैं, किन्तु मान नहीं करते। २. कई ऐसे होते हैं जो मान करते हैं, किन्तु गण को विशुद्ध बनाए रखने वाले नहीं ह्येते। ३. कई ऐसे होते हैं जो गण को विशुद्ध बनाए रखने वाले भी होते हैं और मान भी करते हैं।
४. कई ऐसे होते हैं जो न तो गण को विशुद्ध बनाए रखने वाले होते हैं तथा न मान ही करते हैं।
विवेचन - "भिन्नरुचिर्हि लोकः" लोगों की रुचियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं, सब एक से नहीं होते। रुचियों के अनुसार व्यक्ति कार्य में प्रवृत्त होते हैं। इन सूत्रों में भिन्न-भिन्न छाप युक्त साधुओं का पाँच चतुर्भागयों में वर्णन हुआ है। __ प्रथम चतुभंगी का संबंध साधु के अपने स्वयं के व्यक्तित्व के साथ है, द्वितीय चतुर्भगी गण के कार्य से, तृतीय चतुभंगी गण के संग्रह से, चतुर्थ चतुर्भगी गण की शोभा से तथा पंचम चतुर्भगी गण की शुद्धि से संबंधित है।
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