________________
व्यवहार सूत्र - दशम उद्देशक
२०२ XXXXXX**★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★*************
वीसवासपरियाए - बीस वर्ष की दीक्षा-पर्याय से युक्त, सव्वसुयाणुवाई - सर्वश्रुतानुपाती
सर्वश्रुतधारक।
. भावार्थ - २८९. तीन वर्ष तक के दीक्षा-पर्याय से युक्त श्रमण-निर्ग्रन्थ को आचारप्रकल्प नामक अध्ययन पढाना कल्पता है।
२९०. चार वर्ष तक के दीक्षा-पर्याय से युक्त श्रमण-निर्ग्रन्थ को सूत्रकृतांग नामक (द्वितीय) अंग सूत्र पढाना कल्पता है।
- २९१. पाँच वर्ष तक के दीक्षा-पर्याय से युक्त श्रमण-निर्ग्रन्थ को दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र, बृहत्कल्पसूत्र एवं व्यवहार सूत्र पढाना कल्पता है।
२९२. आठ वर्ष तक के दीक्षा-पर्याय से युक्त श्रमण-निर्ग्रन्थ को स्थानांग सूत्र एवं समवायांग सूत्र पढाना कल्पता है।
२९३. दस वर्ष तक के दीक्षा-पर्याय से युक्त श्रमण-निर्ग्रन्थ को व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) नामक अंग सूत्र पढाना कल्पता है।
२९४. ग्यारह वर्ष तक के दीक्षा-पर्याय से युक्त श्रमण-निर्ग्रन्थ को क्षुल्लिका-विमानप्रविभक्ति, महती-विमान-प्रविभक्ति, अंगचूलिका, वर्गचूलिका एवं व्याख्याप्रज्ञप्ति चूलिका नामक अध्ययन पढाना कल्पता है।
२९५. बारह वर्ष तक के दीक्षा-पर्याय से युक्त श्रमण-निर्ग्रन्थ को गरुडोपपात, धरणोपपात, वैश्रमणोपपात तथा वेलंधरोपपात नामक अध्ययन पढाना कल्पता है।
२९६. तेरह वर्ष तक के दीक्षा-पर्याय से युक्त श्रमण-निर्ग्रन्थ को उत्थानपरियापनिका, समुत्थानश्रुत, देवेन्द्रोपपात तथा नागपरियापनिका नामक अध्ययन पढाना कल्पता है।
२९७. चवदह वर्ष तक के दीक्षा-पर्याय से युक्त श्रमण-निर्ग्रन्थ को स्वप्नभावना नामक अध्ययन पढाना कल्पता है। . _____२९८. पन्द्रह वर्ष तक के दीक्षा-पर्याय से युक्त श्रमण-निर्ग्रन्थ को चारणभावना नामक अध्ययन पढाना कल्पता है।
२९९. सोलह वर्ष तक के दीक्षा-पर्याय से युक्त श्रमण-निर्ग्रन्थ को तेजोनिसर्ग नामक अध्ययन पढाना कल्पता है।
३००. सतरह वर्ष तक के दीक्षा-पर्याय से युक्त श्रमण-निर्ग्रन्थ को आशीविषभावना नामक अध्ययन पढाना कल्पता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org