Book Title: Trini Ched Sutrani
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 521
________________ १९५...........maratrikaarkariHRA त्रिविध स्थविर kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk★★★★★★★★★★★★★ आचार्य शब्द से यहाँ उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर आदि वे विशिष्ट साधु भी उपलक्षित हैं, जिन्हें आचार्य ने प्रव्रज्या आदि देने हेतु अधिकृत किया हो। - ये चारों कार्य करने वाले भिन्न-भिन्न हों यह आवश्यक नहीं है। एक ही आचार्य आदि द्वारा चारों प्रकल्प संपादित किए जा सकते हैं। कारणवश ये पृथक्-पृथक् कार्य, पृथक्-पृथक् आचार्य आदि द्वारा भी संपादित किए जा सकते हैं। दोनों ही पद्धतियाँ विहित हैं, इनमें प्रशस्त या अप्रशस्त का कोई भेद नहीं है। उपर्युक्त सूत्रों के अन्तर्गत धर्माचार्य - प्रतिबोध देने वाले आचार्य शिष्य भी बतलाए हैं। जिस प्रकार प्रव्रज्या आदि चार प्रकल्पों के आधार पर चार प्रकार के आचार्य प्रतिपादित हुए हैं, उसी प्रकार ज्ञातव्यता की दृष्टि से चार प्रकार के शिष्यों का वर्णन हुआ है। ___त्रिविध स्थविर तओ थेरभूमीओ पण्णत्ताओ, तंजहा-जाइथेरे सुयथेरे परियायथेरे। सहिवासजाए समणे णिग्गंथे जाइथेरे, ठाण समवायंगधरे समणे णिग्गंथे सुयथेरे, वीसवासपरियाए समणे णिग्गंथे परियायथेरे।।२८३॥ कठिन शब्दार्थ - तओ - त्रय - तीन, थेरभूमीओ - स्थविर भूमियाँ - अवस्थाएं, जाइथेरे - जातिस्थविर - वयस्थविर, सुयोरे - श्रुतस्थविर - ज्ञानस्थविर, परियायथेरे - दीक्षा स्थविर, सट्ठिवासजाए - जिसका जन्म हुए साठ वर्ष हो गए हों या साठ वर्ष की आयु से युक्त, ठाण - स्थानांग, समवायांगधरे - समवायांग श्रुतधारक - श्रुतवेत्ता वीसवासपरियाए - बीस वर्ष के दीक्षा पर्याय से युक्त।। भावार्थ - २८३. तीन स्थविर भूमियाँ बतलाई गई हैं, वे इस प्रकार हैं - १. जातिस्थविरवयस्थविर, २. श्रुतस्थविर एवं ३. पर्याय स्थविर। १. जिसका जन्म हुए साठ वर्ष व्यतीत हो जाते हैं - जो साठ वर्ष की आयु का होता है, वह साधु जाति-स्थविर या वय-स्थविर होता है। २. जो स्थानांग तथा समवायांग श्रुत का धारक होता है - आगमों का ज्ञाता होता है, वह श्रुतस्थंविर होता है। ३. जिसका दीक्षा-पर्याय बीस वर्ष का होता है - जिसे दीक्षा लिए बीस वर्ष व्यतीत हो जाते हैं, वह पर्याय स्थविर होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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