Book Title: Trini Ched Sutrani
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 519
________________ १९३. आचार्य एवं शिष्य के भेद AMARRIAttitiktatitikaitritikaartaarakkakakakakakaki इस चतुभंगी के प्रथम एवं द्वितीय भंग में वर्णित स्थितियाँ साधुत्व के उत्कर्ष की दृष्टि से किंचित् न्यूनता की द्योतक हैं। आचार्य एवं शिष्य के भेद चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तंजहा-पव्वावणायरिए णामेगे णो उवट्ठावणायरिए, उवट्ठावणायरिए णामेगे णो पव्वावणायरिए, एगे पव्वावणायरिए वि उवट्ठावणायरिए वि, एगे णो पव्वावणायरिए णो उवट्ठावणायरिए धम्मायरिए॥२७९॥ ___चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तजंहा-उद्देसणायरिए णामेगे णो वायणायरिए, वायणायरिए णामेगे णो उद्देसणायरिए, एगे उद्देसणायरिए वि वायणायरिए वि, एगे णो उद्देसणायरिए णो वायणायरिए धम्मायरिए॥२८०॥ __चत्तारि अंतेवासी पण्णत्ता, तंजहा-पव्यावणंतेवासी णामेगे णो उवट्ठावणंतेवासी, एगे उवट्ठावणंतेवासी णामेगे णो पव्वावणंतेवासी, एगे पव्वावणंतेवासी वि उवट्ठावणंतेवासी वि, एगे णो पव्वावणंतेवासी णो उवट्ठावणंतेवासी धम्मंतेवासी॥२८१॥ चत्तारि अंतेवासी पण्णत्ता, तंजहा-उद्देसणंतेवासी णामेगे णो वायणंतेवासी, वायणंतेवासी णामेगे णो उद्देसणंतेवासी, एगे उद्देसणंतेवासी वि वायणंतेवासी वि, एगे णो उद्देसणंतेवासी णो वायणंतेवासी धम्मंतेवासी॥२८२॥ ___ कठिन शब्दार्थ - पव्वावणायरिए - प्रव्राजनाचार्य - प्रव्रज्या - दीक्षा देने वाले, उवट्ठावणायरिए - उपस्थापनाचार्य - उपस्थापन या महाव्रतों का आरोपण करने वाले, उद्देसणायरिए - उद्देशनाचार्य - उद्देशना या श्रुतोक्त क्रियाकलाप आदि शिक्षण द्वारा द्वादशांग आदि श्रुताध्ययन की योग्यता संपादित करने वाले, वायणायरिए - वाचनाचार्य - आगमों की वाचना देने वाले, धम्मायरिए - धर्माचार्य - प्रतिबोध देने वाले आचार्य, अंतेवासी - शिष्य, पव्यावणंतेवासी - प्रव्राजन-अंतेवासी - प्रव्रज्या शिष्य, उवद्वावणंतेवासी- उपस्थापनअंतेवासी - महाव्रत आरोपण से संबंधित शिष्य, उद्देसणंतेवासी - उद्देशन-अंतेवासी - उद्देशन शिष्य, वायणंतेवासी - वाचना-अंतेवासी - वाचना शिष्य। धम्मंतेवासी - धर्मोपदेश से प्रतिबोधित शिष्य। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


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