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व्यवहार सूत्र - दशम उद्देशक
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भावार्थ - २७९. चार प्रकार के आचार्य परिज्ञापित हुए हैं। वे इस प्रकार हैं :१. कई प्रव्रज्या देने वाले आचार्य होते हैं, किन्तु महाव्रतों का आरोपण करने वाले नहीं होते। २. कई महाव्रतों का आरोपण करने वाले होते हैं, किन्तु प्रव्रज्या देने वाले नहीं होते। ३. कई प्रव्रज्या देने वाले भी होते हैं और महाव्रतों का आरोपण करने वाले भी होते हैं।
४. कई न तो प्रव्रज्या देने वाले होते हैं तथा न महाव्रतों का आरोपण करने वाले ही होते हैं। . २८०. चार प्रकार के आचार्य बतलाए गए हैं। वे इस प्रकार है :१. कई उद्देशनाचार्य होते हैं, किन्तु वाचनाचार्य नहीं होते। २. कई वाचनाचार्य होते हैं, किन्तु उद्देशनाचार्य नहीं होते। ३. कई उद्देशनाचार्य भी होते हैं और वाचनाचार्य भी होते हैं। ४. कई न तो उद्देशनाचार्य होते हैं तथा न वाचनाचार्य ही होते हैं।
२८१. चार प्रकार के शिष्य कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं :- १. कई प्रव्रज्या शिष्य होते हैं, उपस्थापन शिष्य नहीं होते।
२. कई उपस्थापन शिष्य होते हैं, प्रव्रज्या शिष्य नहीं होते। ३. कई प्रव्रज्या शिष्य भी होते हैं और उपस्थापन शिष्य भी होते हैं।
४. कई न तो प्रव्रज्या शिष्य होते हैं तथा न उपस्थापन शिष्य ही होते हैं। किंतु धर्मोपदेश से प्रतिबोधित शिष्य है।
२८२. चार प्रकार के शिष्य बतलाए गए हैं। वे इस प्रकार हैं :- . १. कई उद्देशनाशिष्य होते हैं, वाचनाशिष्य नहीं होते। .. २. कई वाचना शिष्य होते हैं, उद्देशनाशिष्य नहीं होते। ३. कई उद्देशनाशिष्य भी होते हैं और वाचनाशिष्य भी होते हैं।
४. कई न तो उद्देशनाशिष्य होते हैं तथा न वाचनाशिष्य ही होते हैं। किंतु धर्मोपदेश से प्रतिबोधित शिष्य होते हैं।
विवेचन - उपर्युक्त सूत्रों के अन्तर्गत प्रथम एवं द्वितीय सूत्र में प्रव्रज्या - छोटी दीक्षा, उपस्थापन या महाव्रतारोपण - बड़ी दीक्षा, उद्देशना - द्वादशांग युक्त के अध्ययन की प्रारम्भिक योग्यता का संपादन तथा वाचना - आगमों के पाठ की एवं अर्थ की वाचना देने के आधार पर यहाँ आचार्य के चार भेदों का वर्णन किया है।
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