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१९९ प्राप्त-अप्राप्त-यौवन साधु-साध्वी को आचारप्रकल्प पढ़ाने का विधि-निषेध kakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
विवेचन - इन सूत्रों में अल्पायु में प्रव्रजित बालक और बालिका को उपस्थापित करने के संदर्भ में निषेध मूलक वर्णन है। ___सामान्यतः जैन परंपरा में सातिरेक आठ वर्ष और गर्भ के सवा नौ मास मिलाकर कम से कम नौ वर्ष का बालक या बालिका प्रव्रज्या के योग्य माने गए हैं। किन्तु अल्पवयस्क बालक-बलिका के माता-पिता आदि अभिभावक प्रव्रजित हो रहे हों तो उनके साथ उनके अल्पवयस्क पुत्र या पुत्री भी आपवादिक रूप में प्रव्रजित किए जा सकते हैं। किन्तु जब तक वे आठ वर्ष की आयु पार न कर लें, तब तक उन्हें सामायिक चारित्र में ही रखा जाता है। छेदोपस्थापनीय चारित्र में उपस्थापित नहीं किया जाता - महाव्रतारोपण नहीं किया जाता। क्योंकि अल्पवयस्क बालक-बालिकाओं में स्वभावतः मानसिक स्थिरता कम होती है। प्राप्त-अप्राप्त-यौवन साधु-साध्वी को आचारप्रकल्प पढ़ाने का विधि-निषेध ___णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा अव्वंजणजायस्स आयारपकप्पे णामं अज्झयणे उद्दिसित्तए॥२८७॥ . - कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा वंजणजायस्स आयारपकप्पे णामं अज्झयणे उहिसित्तए॥२८८॥
कठिन शब्दार्थ - अव्वंजणजायस्स - अव्यंजनजात - अप्राप्त यौवन या जिसने युवावस्था प्राप्त न की हो, उद्दिसित्तए - उद्दिष्ट करना - पढाना या अध्ययन कराना, वंजणजायस्स - व्यंजनजात-यौवनप्राप्त या जिसने युवावस्था प्राप्त कर ली हो।
भावार्थ - २८७. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थिनियों को अप्राप्त यौवन साधु-साध्वी को आचार प्रकल्प अध्ययन उद्दिष्ट करना - पढाना नहीं कल्पता।
२८८. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थिनियों को यौवनप्राप्त साधु-साध्वी को आचार प्रकल्प अध्ययन उद्दिष्ट करना - पढाना कल्पता है।
विवेचन - यहाँ प्रयुक्त आचार प्रकल्प का अभिप्राय आचारांगसूत्र एवं निशीथसूत्र है। सोलह वर्ष की आयु से कम साधु-साध्वी को इन्हें पढाना निषिद्ध है। निशीथ सूत्र में इस संबंध में विस्तार से वर्णन हुआ है।
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