________________
२१................... धार्मिक दृढ़ता के तीन चतुर्भंग
tattatadakatatatatatattatattatraddkadatatatattatuttitutiAX
.....maratrika
चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तंजहा - धम्मंणामेगे जहइ णो गणसंठिइं, गणसंठिइं णामेगे जहइ णो धम्म, एगे गणसंठिई पि जहइ धम्मं पि जहइ, एगे णो गणसंठिइं जहइ णो धम्मं जहइ॥२७७॥
- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तंजहा - पियधम्मे णामेगे णो दढधम्मे, दढधम्मे णामेगे णो पियधम्मे, एगे पियधम्मे वि दढधम्मे वि, एगे णो पियधम्मे णो दढधम्मे॥२७८॥
कठिन शब्दार्थ - रूवं - रूप - लिंग या वेश, जहइ - छोड़ते हैं, गणसंठिइं - गणसंस्थिति - गण की मर्यादा, पियधम्मे - प्रियधर्मा - धर्म को प्रिय या प्रीतिकर समझने वाले, दढधम्मे - दृढधर्मा - धर्म में दृढतायुक्त।
भावार्थ - २७६. चार प्रकार के (साधनाशील) पुरुष - साधु परिज्ञापित हुए हैं। वे इस प्रकार हैं :.. १. कई ऐसे होते हैं, जो (किसी अनिवार्य कारणवश) अपना साधुवेश छोड़ देते हैं, किन्तु धर्म को नहीं छोड़ते।
२. कई ऐसे होते हैं, जो धर्म को तो छोड़ देते हैं, किन्तु साधुवेश को नहीं छोड़ते। ३. कई ऐसे होते हैं, जो साधुवेश को भी छोड़ देते हैं और धर्म को भी छोड़ देते हैं। ४. कई ऐसे होते हैं जो न तो साधुवेश को छोड़ते हैं तथा न धर्म को ही छोड़ते हैं। . २७७. चार प्रकार के (साधनाशील)पुरुष बतलाए गए हैं। वे इस प्रकार हैं :१. कई ऐसे होते हैं, जो धर्म को छोड़ देते हैं, किन्तु गण की मर्यादा को नहीं छोड़ते। २. कई ऐसे होते हैं, जो गण की मर्यादा को छोड़ देते हैं, किन्तु धर्म को नहीं छोड़ते। ३. कई ऐसे होते हैं, जो गण की मर्यादा को भी छोड़ देते हैं और धर्म को भी छोड़ देते हैं। ४. कई ऐसे होते हैं, जो न तो गण की मर्यादा को छोड़ते हैं तथा न धर्म को ही छोड़ते हैं। २७८. चार प्रकार के (साधनाशील) पुरुष कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं :१. कई ऐसे होते हैं, जिन्हें धर्म प्रिय तो होता है, किन्तु जो धर्म में दृढ नहीं होते। २. कई ऐसे होते हैं, जो धर्म में दृढ तो होते हैं, किन्तु जिन्हें धर्म प्रिय-प्रीतिकर नहीं होता। हैकई ऐसे होते हैं, जिनको धर्म प्रिय भी होता है और जो धर्म में दृढ भी होते हैं। ४. कई ऐसे होते हैं, जिनको न तो धर्म प्रिय ही होता है तथा जो न धर्म में दृढ ही होते हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org