Book Title: Trini Ched Sutrani
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 514
________________ व्यवहार सूत्र - दशम उद्देशक xxxkakakakakakakakakiraikikattakindiandiaritrakarmirkariART ...............१८८ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तंजहा - गणट्ठकरे णामं एगे णो माणकरे, माणकरे णामं एगे णो गणट्टकरे, एगे गणट्टकरे वि माणकरे वि, एगे णो गणटकरे णो माणकरे॥२७२॥ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तंजहा - गणसंगहकरे णामं एगे णो माणकरे, माणकरे णामं एगे णो गणसंगहकरे, एगे गणसंगहकरे वि माणकरे वि, एगे णो गणसंगहकरे णो माणकरे॥२७३॥ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तंजहा - गणसोहकरे णामं एगे णो माणकरे, माणकरे णामं एगे णो गणसोहकरे, एगे गणसोहकरे वि माणकरे वि, एगे णो गणसोहकरे णो माणकरे॥२७४॥ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तंजहा - गणसोहिकरे णामं एगे णो माणकरे, माणकरे णामं एगे णो गणसोहिकरे, एगे गणसोहिकरे वि माणकरे वि, एगे णो गणसोहिकरे णो माणकरे। २७५॥ कठिन शब्दार्थ - पुरिसजाया - साधनाशील पुरुष, अट्ठकरे - अर्थकर - उपकारात्मक कार्य करने वाला, माणकरे - मान करने वाला (मैंने यह किया है, ऐसा कर्तव्य का अभिमान करने वाला), गणटुकरे - गणार्थकर - साधु समुदाय या गच्छ का कार्य करने वाला, गणसंगहकरे - गणसंग्रहकर - गण का द्रव्य एवं भाव रूप संग्रह - संवर्धन या विकास करने वाला, गणसोहकरे - गणशोभाकर - गण की शोभा - प्रतिष्ठा या प्रशस्ति बढाने वाला, गणसोहिकरे - गणशोधिकर - प्रायश्चित्त-दान तथा धर्मप्ररूपणा आदि द्वारा गण को विशुद्ध बनाए रखने वाला। भावार्थ - २७१. चार प्रकार के (साधनाशील) पुरुष परिज्ञापित हुए हैं - कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं : १. कई ऐसे होते हैं, जो अपना कार्य - उपकार करते हैं, किन्तु मान नहीं करते। २. कई ऐसे होते हैं, जो मान करते हैं, किन्तु अपना कार्य या उपकार नहीं करते। ३. कई ऐसे होते हैं, जो कार्य भी करते हैं और मान भी करते हैं। ४. कई ऐसे होते हैं, जो न तो कार्य करते हैं तथा न मान ही करते हैं। २७२. चार प्रकार के (साधनाशील) पुरुष बतलाए गए हैं। वे इस प्रकार हैं :१. कई ऐसे होते हैं जो गण का कार्य करते हैं किन्तु मान नहीं करते। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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