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.. व्यवहार सूत्र - सप्तम उद्देशक *aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa* को दीक्षित कर सकते हैं। किन्तु वे उनको अपने शिष्य या शिष्या के रूप में दीक्षित नहीं करते वरन् आचार्य या उपाध्याय के शिष्य अथवा शिष्या के रूप में, उनके नाम से दीक्षित करते हैं।
जहाँ पर साधुओं का पहुँचना संभव नहीं हो तथा दीक्षा लेने वाला साध्वी के पिता पुत्रादि हो ऐसे परिस्थिति में साधुओं के लिए साध्वी उसे दीक्षित कर सकती है।
साधु, बहिन को स्वयं की शिष्या बनाने पर लोक व्यवहार में अटपटा (असहज) लगता है। लोग अनुचित संबंधादि की भी कल्पना कर सकते हैं। इत्यादि कारणों से स्वयं की शिष्याएं बनाने में उपर्युक्त बाधाएं आती है अतः दूसरे साधु-साध्वियों की शिष्या बनाने की विधि बताई है। पुरुष के लिए 'णिग्गंथस्स अट्ठाए' एवं स्त्री के लिए 'अण्णस्स अट्ठाए' बताया है। इससे यह समझा जाता है कि - साध्वी पुरुष को तो साधु के लिए ही दीक्षित कर सकती है। किन्तु साधु स्त्री को अपने से भिन्न साधु साध्वियों के लिए दीक्षित कर सकता है। ... भिक्षु-संघ की अनुशासनबद्ध व्यवस्था की दृष्टि से ऐसा होना अत्यन्त उपयोगी है। पृथक्-पृथक् अपने-अपने शिष्य या शिष्याओं के रूप में किन्हीं को दीक्षित करने से गण में विशृंखलता आती है, अनुशासन में शिथिलता आती है। ऐसा होना संघ के विकास में हानिप्रद है।
- इन सूत्रों में प्रव्रजित, मुण्डित, शिक्षित और चारित्र में पुन: उपस्थिापित के रूप में जो वर्णन हुआ है, उनका अपना-अपना विशेष अर्थ है।
'व्रज्' धातु जाने के अर्थ में है। उसके पूर्व 'प्र' उपसर्ग लगाने से कृदन्त में प्रव्रज्या, प्रव्रजित आदि रूप बनते हैं। प्रव्रज्या का या प्रव्रजित होने का अभिप्राय संसार का त्याग कर संयम की दिशा में जाना, आत्म-प्रकर्ष की ओर अग्रसर होना है। ___ जब कोई दीक्षित होता है तो अपने सिर को मुण्डित करा लेता है। सिर पर थोड़े से बाल बाकी रखे जाते हैं, जिन्हें दीक्षा प्रदाता अपने हाथ से लुंचित करते हैं। उस दीक्षार्थी पुरुष का लोच आचार्य या उपाध्याय आदि पदासीन भिक्षु द्वारा या उनकी ओर से दीक्षित करने वाले भिक्षु द्वारा किया जाता है। महिला दीक्षार्थिनी का लोच प्रवर्तिनी द्वारा या उसकी ओर से दीक्षित करने वाली साध्वी द्वारा किया जाता है। इसे मुण्डन प्रक्रिया कहा जाता है।
शिक्षित करने का अर्थ ग्रहण और आसेवन शिक्षा के रूप में दशवैकालिक सूत्र का अध्ययन तथा आचार प्रक्रिया, वस्त्र परिधान आदि का विधिवत् ज्ञान कराना है।
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