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१५७ शय्यातर के घर पर अन्यों के निमित्त निष्पन्न आहार-ग्रहण-विषयक विधि-निषेध AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAkkkkkkkkkkkkkkkkkk करें, वैसी स्थिति में उस आहार में से वे किसी साधु को भिक्षा के रूप में दे तो साधु को उसे लेना नहीं कल्पता।
२२६. शय्यातर के दास, प्रेष्य, भृत्य या भृतक के लिए आहार बनाया गया हो और वह शय्यातर उन्हें अप्रातिहारिक रूप में खाने हेतु दे तथा वे घर के बाहरी भाग में आहार करें, वैसी स्थिति में उस आहार में से वे किसी साधु को भिक्षा के रूप में दें तो साधु को उसे लेना कल्पता है।
२२७. शय्यातर का कोई स्वजन - पारिवारिक सदस्य या जातीय संबंधी उसी के घर में रहता हो और वह शय्यातर की सामग्री से ही उसी के चूल्हे पर अपने द्वारा बनाए गए आहार से जीवन निर्वाह करता हो। यदि वह उस आहार में से भिक्षार्थ साधु को दे तो साधु को उसे लेना नहीं कल्पता।
२२८. शय्यातर का कोई स्वजन उसी के घर में रहता हो और वह शय्यातर की सामग्री से शय्यातर के चूल्हे से भिन्न चूल्हे पर अपने द्वारा बनाए गए आहार से जीवन निर्वाह करता हो। यदि वह उस आहार में से भिक्षार्थ साधु को दे तो साधु को उसे लेना नहीं कल्पता।
२२९. शय्यातर का कोई स्वजन उसी के घर में रहता हो और वह उसके घर के बाहरी भाग में शय्यातर की सामग्री से ही उसी के चूल्हे पर अपने द्वारा बनाए गए आहार से जीवन निर्वाह करता हो। यदि वह उस आहार में से भिक्षार्थ साधु को दे तो साधु को उसे लेना नहीं कल्पता। ____२३०. शय्यातर का कोई स्वजन उसी के घर में रहता हो और वह उसके घर के बाहरी भाग में शय्यातर के चूल्हे से भिन्न चूल्हे पर उसी की सामग्री से ही बनाए गए आहार से जीवन निर्वाह करता हो। यदि वह उस आहार में से भिक्षार्थ साधु को दे तो साधु को उसे लेना नहीं कल्पता।
२३१. शय्यातर का कोई स्वजन उसी के घर के पृथक् विभाग में रहता हो, जो बाहर जाने-आने के एक ही द्वार से घर से जुड़ा हो, वह घर के भीतर शय्यातर के ही चूल्हे पर उसी की सामग्री से आहार बनाकर जीवन निर्वाह करता हो। यदि वह उस आहार में से भिक्षार्थ साधु को दे तो साधु को उसे लेना नहीं कल्पता।
२३२. शय्यातर का कोई स्वजन उसी के घर के पृथक् विभाग में रहता हो, जो बाहर जाने-आने के एक ही द्वार से घर से जुड़ा हो, वह घर के भीतर शय्यातर के चूल्हे से भिन्न
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