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त्रिविध आहार १७१ muttttttitattattituttitiktatattattattattituatxtituttitute
२६२. दत्ति-संख्या-विषयक अभिग्रह युक्त कर-पात्रभोजी भिक्षु यदि भिक्षा लेने हेतु गृहस्थ के घर में गया हुआ हो। गृहस्थ जितनी बार भोज्य सामग्री को ऊपर उठा कर साधु के हाथ में दे, उतनी ही दत्तियाँ वहाँ कथन करने योग्य हैं - कही गई हैं। . __ . वहाँ - गृहस्थ के घर में कोई छबड़ी से, वस्त्र से या चालनी से एक बार में साधु के हाथ में जो आहार दे, संख्या की दृष्टि से उसे एक दत्ति कहा गया है।
यदि गृहस्थ के घर में बहुत से व्यक्ति भोजन करते हों अथवा भोजन करने वाले हों और वे सब अपने-अपने आहार को एक साथ मिलाकर, ऊपर उठाकर साधु के हाथ में एक . बार में दे, उसे संख्या की दृष्टि से एक दत्ति कहा गया है।
विवेचन - सप्तसप्तमिका आदि भिक्षुप्रतिमाओं में दत्तियों की संख्या के आधार पर भिक्षा लेने का वर्णन हुआ है। यहाँ इन सूत्रों में दत्तियों के स्वरूप या प्रमाण का निर्धारण किया गया है। तत्त्वतः एक बार में, ऊपर उठाकर पात्र या हाथ में दिया गया, उँडेला गया आहार एक दत्ति कहा जाता है। बहुत से व्यक्ति अपना आहार मिलाकर इसी रूप में दे तो वह भी एक दत्ति ही माना जाता है।
पेय पदार्थ अखण्डित धारा के रूप में एक बार में पात्र में उँडेल कर जितना दिया जाता है, वह एक दत्ति में परिगणित होता है।
' यहाँ दत्ति-संख्या-विषयक अभिग्रह युक्त पात्रभोजी और कर-पात्रभोजी - दो प्रकार के . भिक्षुओं का उल्लेख है। भोजन के लिए पात्र नं रख कर पात्र के रूप में हाथ का ही प्रयोग करना तितिक्षा एवं अपरिग्रह का उत्कृष्ट रूप है।
त्रिविध आहार तिविहे उवहडे पण्णत्ते, तंजहा - सुद्धोवहडे फलिओवहडे संसट्ठोवहडे॥ २६३॥
कठिन शब्दार्थ - तिविहे - तीन प्रकार का, उवहडे - उपहृत - भिक्षा में प्राप्त आहार, सुद्धोवडे - शुद्धोपहृत - शुद्ध - अलेप्य खाद्य पदार्थ, फलिओवहडे - फलितोपहृतअनेक व्यंजन युक्त खाद्य पदार्थ, संसट्ठोवहडे - संसृष्टोपहृत - व्यंजन रहित संलेप्य खाद्य पदार्थ।
भावार्थ - २६३. भिक्षा में गृहीत खाद्य पदार्थ तीन प्रकार के बतलाए गए हैं। वे इस प्रकार हैं -
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