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व्यवहार सूत्र
नवम उद्देशक
उवित्ता दलज्जा, सा वि णं सा एगा दत्ती वत्तत्व्वं सिया, तत्थ से बहवे भुंजमाणा सव्वे ते सयं सयं पिंडसाहणिय अंतो पडिग्गहंसि उवित्ता दलएज्जा, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया ।। २६१ ॥
संखादत्तियस्स णं भिक्खुस्स पाणिपडिग्गहियस्स णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविट्ठस्स जावइयं केइ अंतो पाणिंसि उवइत्तु दलएज्जा तावइयाओ दत्तीओ वत्तव्वं सिया, तत्थ से केइ छव्वएण वा दूसएण वा वालएण वा अंतो पाणिसि उवित्ता दलज्जा, साविणं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया, तत्थ से बहवे भुंजमाणा सव्वे ते सयं सयं पिंडं साहणिय अंतों पाणिंसि उवित्ता दलएज्जा, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया ॥ २६२ ॥
विषयक संख्या के अभिग्रह से युक्त,
ऊपर उठाकर,
कठिन शब्दार्थ - संखादत्तियस्स - दत्ति पडिग्गहधारिस्स - पात्रधारी, पिंडवाय-पडियाए आहार लेने की इच्छा से, जावइयं - यावत्क जितनी बार, अंतो पडिग्गहंसि पात्र के भीतर, उवइत्तुं दलज्जा देवे, तावइयाओ - तावरक उतनी वत्तव्वं छव्वएण - छबड़ी से, दूसएण वस्त्र से, वालएण चालनी से, भुंजमाणा - भोजन करते हुए अथवा भोजन करने वाले, सयं सयं - स्वक-स्वक अपना-अपना, साहणिय - सम्मिलित कर मिलाकर, पाणिपडिग्गाहियस्स कर पात्रभोजी
वक्तव्य
कथन करने योग्य,
हाथ का ही पात्र के
रूप में उपयोग कर आहार करने वाला, अंतो पाणिंसि - हाथ में ।
भावार्थ - २६१. दत्ति-संख्या-विषयक अभिग्रह युक्त पात्रधारी भिक्षु यदि भिक्षा लेने हेतु गृहस्थ के घर में गया हुआ हो । गृहस्थ जितनी बार भोज्य सामग्री को ऊपर उठाकर साधु के पात्र में दे, उतनी ही दत्तियाँ वहाँ कथन करने योग्य हैं - कही गई हैं।
वहाँ - गृहस्थ के घर में कोई छबड़ी से, वस्त्र से या चालनी से एक बार में साधु के पात्र में जो आहार दे, संख्या की दृष्टि से उसे एक दत्ति कहा गया है।
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यदि गृहस्थ के घर में बहुत से व्यक्ति भोजन करते हों अथवा भोजन करने वाले हों और वे सब अपने-अपने आहार को एक साथ मिला कर ऊपर उठा कर साधु के पात्र में एक बार में दे तो उसे संख्या की दृष्टि से एक दत्ति कहा गया है।
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