Book Title: Trini Ched Sutrani
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 511
________________ १८५ पंचविध व्यवहार Aaradatt शुक्लपक्ष के प्रारम्भ के किनारे पर प्रतिपदा है, कृष्णपक्ष के अन्त से पूर्व चतुर्दशी दूसरी ओर का किनारा है। शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तथा कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के दिन यवमध्य चन्द्रप्रतिमा में एक-एक दत्ति आहार-पानी लिया जाता है। अमावस्या की रात्रि को जिस प्रकार चन्द्रोदय नहीं होता उसी प्रकार यवमध्य चन्द्रप्रतिमा प्रतिपन्न साधु अमावस्या को आहार पानी की एक भी दत्ति नहीं लेता अर्थात् उपवास करता है। इसी प्रकार वज्रमध्य चन्द्रप्रतिमा की दत्तियों की वृद्धि-हानि का क्रम वज्र के आकार के अनुरूप होता है। जिस प्रकार वज्र रत्न या डमरू का एक किनारा विस्तृत, मध्य भाग संकुचित और दूसरा किनारा, विस्तृत होता है। उसी प्रकार जिस प्रतिमा के प्रारंभ में पन्द्रह दत्ति, मध्य में एक दत्तिः ' और बाद में उपवास किया जाता है, उसे 'वज्रमध्य चंद्रप्रतिमा' कहा जाता है। वैदिक धर्म में स्वीकृतं चान्द्रायण नामक व्रत भी इसी रूप में चन्द्र-ज्योत्स्ना के शुक्लपक्षकृष्णपक्ष की क्रमिक वृद्धि-हानि के अनुसार उत्तरोत्तर बढाए जाते तथा कम किए जाते कवलों - ग्रासों के आधार पर अनुपालित होता है। वहाँ दत्तियों के स्थान पर कवल - कौर को लिया गया है। पंचविध व्यवहार • पंचविहे ववहारे पण्णत्ते, तंजहा - आगमे सुए आणा धारणा जीए। जत्थेव तत्थ आगमे सिया, आगमेणं ववहारं पट्टवेज्जा, णो से तत्थ आगमे सिया, जहा से तत्थ सुए सिया, सुएणं ववहारं पट्टवेज्जा, णो से तत्थ सुए सिया, जहा से तत्थ आणा सिया, आणाए ववहारं पट्टवेजा, णो से तत्थ आणा सिया, जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहारं पट्टवेजा, णो से तत्थ धारणा सिया, जहा से तत्थ जीए सिया, जीएणं ववहारं पट्टवेज्जा, एएहिं पंचहिं ववहारेहिं ववहारं पट्टवेज्जा, तंजहा - आगमेणं सुएणं आणाए धारणाए जीएणं, जहा से आगमे सुए आणा धारणा जीए तहा तहा ववहारे पट्टवेजा, से किमाह भंते? आगमबलिया समणा णिग्गंथा, इच्चेयं पंचविहं ववहारं जया जया जहिं जहिं तहा तहा तहिं तहिं अणिस्सिओवस्सियं ववहारं ववहारेमाणे समणे णिग्गंथे आणाए आराहए भवइ॥२७०॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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