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अगृहीत आहार के भेद
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२. जिस पात्र में खाद्य पदार्थ रखे हों, उसमें से देने हेतु, प्रस्तुत करने हेतु निकालना
द्वितीय भेद के अन्तर्गत है ।
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३. देने हेतु प्रस्तुत करने हेतु पात्र में प्रक्षिप्त करना
एक नय की अपेक्षा से ऐसा कहा जाता है।
२६५. (एक नय की अपेक्षा से दूसरे प्रकार से ऐसा भी कहा जाता है।) अवगृहीत आहार के दो भेद हैं। वह इस प्रकार है -
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१. देने हेतु अवगृहीत करना ।
२. देने हेतु, प्रस्तुत करने हेतु पात्र में प्रस्तुत करना ।
विवेचन - यहाँ प्रयुक्त प्राकृत के 'आसगंसि' शब्द का संस्कृत रूप 'आस्ये' है जो 'आस्य' शब्द का सप्तमी विभक्ति (अधिकरण कारक) का एक वचन का रूप है। आस्य का अर्थ मुख होता है। यहाँ मुख से पात्र अध्याहृत (Understood ) है । अर्थात् यहाँ पात्र का मुख से पूर्व अध्याहार किया गया है।
उपरोक्त सूत्र में 'एगे पुण एवमाहंसु' शब्दों का प्रयोग किया गया है। इससे मान्यताभेद की कल्पना उत्पन्न होती है, किन्तु यहाँ दो अपेक्षाओं को लेकर सूत्र की रचना पद्धति है, ऐसा समझना चाहिए।
डालना तृतीय भेद में है ।
जीवाभिगम सूत्र में भी ऐसे वाक्य अनेक बार आए हैं। वहाँ पर टीकाकार ने भी वैसा ही स्पष्टीकरण किया है। अतः यहाँ भी "एगे पुण एवमाहसु" शब्दों का प्रयोग होते हुए भी मान्यता भेद होना नहीं समझना चाहिए।
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भाष्यकार ने भी इसे "आदेश" कहकर इसकी यह परिभाषा बताई है कि - अनेक बहुश्रुतों से चली आई भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं को आदेश कहते हैं। इसलिए प्रस्तुत सूत्र के दोनों विभागों को आदेश (अपेक्षा) ही समझना चाहिए ।
॥ व्यवहार सूत्र का नववाँ उद्देशक समाप्त ॥
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