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सप्तसप्तमिका आदि भिक्ष प्रतिमाएँ *aaaaakakakakakakakakakakakakakakAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA* दिनों की, एगासीए - इक्यासी, चउहि य पंचुत्तरेहिं भिक्खासएहिं - चार सौ पांच भिक्षादत्तियों द्वारा, दसदसमिया - दशदशमिका - दस-दस दिनों की, एगेणं राइंदियसएणं - एक सौ रात-दिन में, अद्धछठेहि य भिक्खासएहिं -साढ़े पांच सौ-पांच सौ पचास भिक्षादत्तियों द्वारा।
भावार्थ - २५५. सप्तसप्तमिका भिक्षुप्रतिमा उनपचास रात्रि-दिवस में एक सौ छियानवें भिक्षादत्तियों द्वारा यथासूत्र, यथाकल्प, यथामार्ग, यथातथ्य, भलीभाँति, मानसिक, वाचिक, कायिकतीनों योगों के साथ स्पर्शित, पालित, शोधित, तीरित, कीर्तित, जिनेश्व देव की आज्ञानुरूप अनुपालित होती है।
२५६. अष्टअष्टमिका भिक्षुप्रतिमा चौसठ रात्रि दिवस में दो सौ अट्ठासी भिक्षादत्तियों द्वास यथासूत्र, यथाकल्प, यथामार्ग, यथातथ्य, भलीभाँति, मानसिक, वाचिक, कायिक - इन तीनों योगों के साथ स्पर्शित, पालित, शोधित, तीरित, कीर्तित, जिनेश्वर देव की आज्ञानुरूप अनुपालित होती है।
२५७. नवनवमिका भिक्षुप्रतिमा इक्यासी रात्रिदिवस में चार सौ पांच भिक्षादत्तियों द्वारा यथासूत्र, यथाकल्प, यथामार्ग, यथातथ्य, भलीभाँति, मानसिक, वाचिक, कायिक - इन तीनों योगों के साथ स्पर्शित, पालित, शोधित, तीरित, कीर्तित, जिनेश्वर देवं की आज्ञानुरूप अनुपालित होती है।
२५८. दशदशमिका भिक्षुप्रतिमा एक सौ रात्रि दिवस में साढे पांच सौ - पाँच सौ पचास भिक्षादत्तियों द्वारा यथासूत्र, यथाकल्प, यथामार्ग, यथातथ्य, भलीभाँति, मानसिक, वाचिक, कायिकइन तीनों योगों के साथ स्पर्शित, पालित, शोधित, तीरित, कीर्तित, जिनेश्वर देव की आज्ञानुरूप अनुपालित होती है।
विवेचन - इन सूत्रों में चार भिक्षु प्रतिमाओं का वर्णन है। उनका संबंध विशेषतः ऊनोदरी तप से है, जिसका पहले यथाप्रसंग वर्णन आ चुका है।
यहाँ चारों प्रतिमाओं में भिक्षा-विषयक दत्तियों की संख्या का जो उल्लेख हुआ है। इस संबंध में ज्ञातव्य है कि उन-उन प्रतिमाओं में सूचित संख्याओं से अधिक दत्तियाँ स्वीकार नहीं की जा सकती, किन्तु प्रतिमा आराधक चाहे तो उस द्वारा कम दत्तियाँ स्वीकार की जा सकती हैं। क्योंकि वैसा करने से ऊनोदरी तप और विशिष्टता पा लेता है।
__ अंतकृद्दशांग सूत्र के अष्टम वर्ग में सुकृष्णा आर्या द्वारा इन भिक्षु प्रतिमाओं की आराधन किए जाने का उल्लेख है।
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