Book Title: Trini Ched Sutrani
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 489
________________ १६३. सागारिक की साझेदारी युक्त दुकान से वस्तु लेने के संबंध में विधि-निषेध ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ यहाँ आम का फल. लिए जाने का जो वर्णन आया है, उसका आशय अचित्त एवं गुठली रहित आम से हैं, क्योंकि साधु सचित्त वस्तु तो ले ही नहीं सकते। __. प्रज्ञापना सूत्र में प्रथम पद में पूर्ण पक्व आम्र फल को दो जीव वाला बताया है। एक जीव गुठली में तथा दूसरा जीव बीट (नोक) में होता है। इन दोनों से रहित होने पर पक्व आम्र फल पूर्ण अचित्त होता है यहाँ पर आम्रफल के उपलक्षण से एक गुठली वाले सभी फल पूर्ण पक्व हो जाने पर तथा गुठली व बीट से रहित होने पर गाह्य समझने चाहिए। आम्र फल सार्वजनीन होने से शास्त्रकारों ने उसका कथन किया है। बहुबीजीय फलों में तो पक जाने पर तथा बीजों को निकाल लेने पर भी सचित्त व मिश्रता की शंका रहती है। अतः शास्त्रकारों ने अग्नि आदि शस्त्रों से परिणत हुए बिना बहुबीजीय फलों को. ग्रहण करने का विधान नहीं किया है। * *निम्न चार सूत्र किसी किसी प्रति में ही मिलते हैं। प्राचीन भाष्य आदि में ये सूत्र नहीं है। ... [सागारियणायए सिया सागारियस्स एगवगडाए एगदुवाराए एगणिक्खमणपवेसाए सागारियस्स एगवयू सागारियं च उवजीवइ, तम्हा दावए, णो से कप्पइ पडिगाहेत्तए॥१॥ सागारियणायए सिया सागारियस्स एगवगडाए एगदुवाराए एमणिक्खमणपवेसाए सागारियस्स अभिणिवयू सागारियं च उवजीवइ, तम्हा दावए, णो से कप्पइ पडिगाहेत्तए॥२॥ ___ सागारियणायए सिया सागारियस्स अभिणिव्वगडाए अभिणिदुवाराए अभिणिक्खमणपवेसाए सागारियस्स एगवयू सागारियं च उवजीवइ, तम्हा दावए, णो से कप्पइ पडिगाहेत्तए॥३॥ सागारियणायए सिया सागारियस्स अभिणिव्वगडाए अभिणिदुवाराए अभिणिक्खमणपवेसाए सागारियस्स अभिणिवयू सागारियं च उवजीवइ, तम्हा दावए, णो से कप्पइ पडिगाहेत्तए॥४॥ . भावार्थ - १. सागारिक के साथ एक घर में, जिसके एक द्वार हो, बाहर निकलने और भीतर आने का एक ही मार्ग हो, सागारिक से प्राप्त सामग्री द्वारा जिसका एक ही चूल्हे पर भोजन बनता हो, वह यदि उसमें से साधु को दे तो उससे भिक्षा-आहार-पानी लेना साधु को नहीं कल्पता। २. सागारिक के साथ एक घर में, जिसके एक द्वार हो, बाहर निकलने और भीतर आने का एक ही मार्ग हो, सागारिक से प्राप्त सामग्री द्वारा जिसका अलग चूल्हे पर भोजन बनता हो, वह यदि उसमें से साधु को दे तो उससे भिक्षा-आहार-पानी लेना साधु को नहीं कल्पता। ३. सागारिक के घर के पृथक् भाग में, जिसका द्वार अलग हो, निकलने और प्रवेश करने का मार्ग अलग हो, सागारिक से प्राप्त सामग्री द्वारा जिसका एक ही चूल्हे पर भोजन बनता हो, वह यदि उसमें से साधु को भिक्षा के रूप में दे तो साधु को लेना नहीं कल्पता। ४. सागारिक के घर के पृथक् भाग में, जिसका द्वार अलग हो, निकलने और प्रवेश करने का मार्ग अलग हो, सागारिक से प्राप्त सामग्री द्वारा जिसका अलग चूल्हे पर भोजन बनता हो, वह यदि उसमें से भिक्षा के रूप में साधु को दे तो उससे भिक्षा - आहार-पानी लेना साधु को नहीं कल्पता।] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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