Book Title: Trini Ched Sutrani
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 493
________________ मोक- प्रतिमा- विधान कठिन शब्दार्थ - खुड्डिया - क्षुद्रिका - छोटी, मोयपडिमा - मोक प्रतिमा - पापकर्मों से मुक्त कराने वाली प्रतिमा, महल्लिया - महतिका - बड़ी, पडिवण्णस्स - प्रतिपन्न स्वीकार किए हुए, पढमसरयकालसमयंसि - शरत् काल के प्रथम समय में - मार्गशीर्ष में, . चरिमणिदाहकालसमयंसि ग्रीष्म ऋतु के अंतिम समय में - आषाढ मास में, बहिया बाहर, वणंसि - वन में - एक जातीय वृक्षों से युक्त वन में, वणदुग्गंसि वन दुर्ग में विभिन्न जातियों के वृक्षों से युक्त सघन वन में, पव्वयंसि पर्वत पर, पव्वयदुग्गंसि अनेक पर्वतों के समुदाय युक्त स्थान में, भोच्चा - भोजन करके, आरुभइ - आरूढ होता है - प्रतिमा की आराधना में संलग्न होता है, चोइसमेणं पारेइ - छह उपवास से पूर्ण करता है, अभोच्चा - बिना भोजन किए, सोलसमेणं पारेइ - सात उपवास से पूर्ण करता है, जब-जब, जितना-जितना, मोए - मात्रक जा-जा प्रस्रवण, मूत्र, आइयव्वे आपातव्य पान करना चाहिए, दिया - दिन में, आगच्छइ आए, राइ - रात्रि में, सपाणे मत्ते - जीव विशिष्ट युक्त प्रस्रवण, अप्पाणे - जीव रहित, सबीए - सवीर्य - शुक्रयुक्त, अबीए - अवीर्य शुक्र रहित, ससणिद्धे - सस्निग्ध - चिकनाई सहित, अससणिद्धे - अस्निग्ध - चिकनाई रहित, ससरक्खे - रज युक्त, अससरक्खे - रज रहित, अप्पे - अल्प - थोड़ा, बहुए अधिक, अट्ठारसमेणं - आठ उपवास से पूर्ण करता है । भावार्थ - २५९. दो प्रतिमाएँ परिज्ञापित प्रतिपादित हुई हैं। वे इस प्रकार हैं १६७ ***** - Jain Education International ✰✰✰✰✰✰ - १. क्षुद्रिका - छोटी मोक प्रतिमा एवं २. महतिका - बड़ी मोक प्रतिमा । . छोटी मोक प्रतिमा को शरत् काल के प्रथम समय में - मार्गशीर्ष में अथवा ग्रीष्मकाल के अन्तिम समय में आषाढ मास में साधु द्वारा स्वीकार करना तथा ग्राम यावत् राजधानी से बाहर, वन, वनदुर्ग, पर्वत या पर्वतदुर्ग में रहते हुए उसकी आराधना करना कल्पता है । - यदि साधु आहार करके प्रतिमा की आराधना में संलग्न होता है तो वह छह उपवास के साथ इसे पूर्ण करता है, इस प्रकार सात अहोरात्र हो जाते हैं । यदि वह भोजन किए बिना - उपवास पूर्वक प्रतिमा की आराधना में संलग्न होता है तो सात उपवास के अनन्तर उसे पूर्ण करता है । अर्थात् उसके सातों ही अहोरात्र उपवास पूर्वक व्यतीत होते हैं। जब-जब जितना-जितना प्रस्रवण होता है, वह आपातव्य योग्य होता है। - For Personal & Private Use Only - पान करने योग्य या पीने www.jainelibrary.org

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