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व्यवहार सूत्र - अष्टम उद्देशक. . *********takakakakakakakakakakakakkakkarkkadkatriktaarkaxxx ऊनोदरिका - त्रिभाग प्राप्त ऊनोदरिका, एगतीसं - इकत्तीस, किंचूणोमोयरिया - किंचित् ऊन ऊनोदरिका- कुछ कम ऊनोदरिका, बत्तीसं - बत्तीस, पमाणपत्ते - प्रमाणप्राप्त, ऊणगं - ऊनक - कम, पकामभोइ - प्रकामभोजी - अधिक खाने वाला; वत्तव्वं - कथन करने योग्य। ____ भावार्थ - २१८. मुर्गी के अण्डे के प्रमाण जितने आठ कौर आहार करता हुआ भिक्षु अल्पाहार - अल्पभोजी कहा जाता है।
मुर्गी के अण्डे के प्रमाण जितने बारह कौर आहार करता हुआ भिक्षु कुछ अधिक अर्ध ऊनोदरिका युक्त कहा जाता है।
. मुर्गी के अण्डे के प्रमाण जितने सोलह कौर आहार करता हुआ भिक्षु द्विभागप्राप्त (१) आहारसेवी - अर्ध ऊनोदरिका युक्त कहा जाता है।
मुर्गी के अण्डे के प्रमाण जितने चौबीस कौर आहार करता हुआ भिक्षु अवप्राप्त ऊनोदरिका - त्रिभागप्राप्त (1) ऊनोदरिका युक्त कहा जाता है। .. मुर्गी के अण्डे के प्रमाण जितने इकत्तीस कौर आहार करता हुआ भिक्षु किंचित् ऊन ऊनोदरिका - कुछ कम ऊनोदरिका युक्त कहा जाता है।
मुर्गी के अण्डे के प्रमाण जितने बत्तीस कौर आहार करता हुआ भिक्षु प्रमाणप्राप्त - परिमित आहारसेवी कहा जाता है।
इससे. एक भी कौर कम आहार करने वाला भिक्षु प्रकामभोजी - यथेच्छभोजी अथवा अपरिमितभोजी नहीं कहा जाता।
विवेचन - "तपसा निर्जरा" संचित कर्म तप द्वारा निर्जीण होते हैं, झड़ते हैं, नष्ट होते हैं। इसलिए निर्जरा को भी तप के रूप में अभिहित किया गया है। निर्जरा के बारह भेद हैं - __१. अनशन, २. ऊनोदरी, ३. भिक्षाचरी, ४. रस-परित्याग, ५. कायक्लेश, ६. प्रतिसंलीनता, ७. प्रायश्चित्त, ८. विनय, ९. वैयावृत्य, १०. स्वाध्याय, ११. ध्यान और १२. व्युत्सर्ग।
- इनमें द्वितीय स्थान पर ऊनोदरी या ऊनोदरिका है। "अनमुदरं यस्यां सा ऊनोदरी, ऊनोदरिका वा" - जहाँ भोजन में पेट कुछ खाली रखा जाता है, अर्थात् प्रत्याख्यानपूर्वक
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