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ऊनोदरी-विषयक परिमाणक्रम
विशेष प्रयोजन तथा आवश्यकता आदि हेतु औरों को उद्दिष्ट कर पात्र, वस्त्र आदि मर्यादित सीमा से अधिक भी लेकर दूर तक जाया जा सकता है। परन्तु जिनको लक्षित या उद्दिष्ट कर वे लाए गए हों, उन्हीं को ही दिया जाए। उनसे पूछे बिना, परामर्श किए बिना औरों को न दिए जाएँ। यदि उनकी स्वीकृति हो तो औरों को दिए जा सकते हैं। .
मर्यादित, नियमित संयमचर्यामूलक जीवन पद्धति का इस सूत्र में साक्षात् निदर्शन है।
इस सूत्र में प्रतिग्रह (पडिग्गह) शब्द का विशेष रूप से प्रयोग हुआ है। यह प्रति' उपसर्ग; 'ग्रह्' धातु और 'अप' प्रत्यय के योग से बना है। "प्रतिगृह्यते - प्रयोजनार्थ स्वीक्रियते धार्यते इति प्रतिग्रहः" - जिसे प्रयोजनवश ग्रहण किया जाता है, स्वीकार किया जाता है या धारण किया जाता है, उसे प्रतिग्रहं कहा जाता है। वस्त्र, पात्र आदि वस्तुएँ प्रतिग्रह के अन्तर्गत आती हैं, जिन्हें जैन साधु-साध्वी सीमित, मर्यादित रूप में धारण करते हैं।
. ऊनोदरी-विषयक परिमाणक्रम अट्ठ कुक्कुडिअंडप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे णिग्गंथे अप्पाहारे, बार( दुवाल )स कुक्कुडिअंडप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे णिग्गंथे अवड्डोमोयरिया, सोलस कुक्कुडिअंडप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे णिग्गंथे दुभागपत्ते, चउवीसं कुक्कुडिअंडप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे णिग्गंथे
ओ( पत्तो )मोयरिया, एगतीसं कुक्कुडिअंडप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे णिग्गंथे किंचूणोमोयरिया, बत्तीसं कुक्कुडिअंडप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे णिग्गंथे पमाणपत्ते, एत्तो एगेण वि कउले(घासे )णं ऊणगं आहारं आहारेमाणे समणे णिग्गंथे णो पकामभोइ-त्ति वत्तव्वं सिया॥२१८॥त्ति बेमि॥
॥ववहारस्स अट्ठमो उद्देसओ समत्तो॥८॥ कठिन शब्दार्थ - अट्ठ - आठ, कुक्कुडिअंडप्पमाणमेत्ते - कुक्कुटिअण्डकप्रमाणमात्रमुर्गी के अण्डे के तुल्य प्रमाण युक्त, कवले - कौर - ग्रास, आहारेमाणे - आहार करता हुआ - खाता हुआ, अप्पाहारे - अल्पाहार, बार( दुवाल)स - बारह, अवड्डोमोयरिया - अपार्ध ऊनोदरिका - कुछ अधिक अर्ध ऊनोदरिका, सोलस - सोलह, दुभागपत्ते - द्विभागप्राप्त - अर्ध ऊनोदरिका, चउवीसं - चौबीस, ओ(पत्तो)मोयरिया - अवप्राप्त
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