________________
१३३ ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
परिहरणीय शय्यातर-विषयक निरूपण
भावार्थ - १९७. कोई गृहस्थ अपने स्थान को किराये पर दे और किरायेदार से कहे कि इस-इस स्थान में श्रमण-निर्ग्रन्थ निवास कर रहे हैं, तब वह गृहस्थ शय्यातर होता है और वह परिहार योग्य है - उसके यहाँ से श्रमण-निर्ग्रन्थ भिक्षा नहीं ले सकते। ...
वह - किराए पर देने वाला कुछ न बोले, अर्थात् उपेक्षा भाव दिखलाए, किराये पर लेने वाला ही बोले - कहे तो वह शय्यातर के रूप में परिहार्य है।
दोनों ही कहें - साधुओं को प्रवास की अनुज्ञा दें तो दोनों ही शय्यातर के रूप में परिहार्य हैं।
१९८. मकान मालिक गृहस्थ, अपना मकान बेचे और लेने वाले से कहे कि इसइस स्थान पर श्रमण-निर्ग्रन्थ निवास कर रहे हैं तो वह मकान मालिक शय्यातर के रूप में परिहार्य है।
. मकान बेचने वाला गृहस्थ कुछ न कहे, खरीददार कहे तो वह शय्यातर के रूप में परिहार्य है।
यदि विक्रेता और क्रेता दोनों ही कहें तो दोनों ही सागारिक के रूप में परिहार्य हैं।
विवेचन - विभिन्न दर्शनों या शास्त्रों के अपने कुछ पारिभाषिक शब्द होते हैं, तदनुसार उनका अपना विशेष अर्थ होता है। जैन आगमों में प्रयुक्त शय्यातर शब्द इसी प्रकार का है। साधुओं को रहने के लिए जो गृहस्थ अपना स्थान देता है, उसे 'शय्यातर' कहा जाता है। "शय्याम् - शयन-आसन-निषीदनाद्युपयोगी स्थानं तरति - प्रापयतीति शय्यातरः।". इस व्युत्पत्ति के अनुसार शय्या का अर्थ सोने, रहने, बैठने आदि के उपयोग में आने वाला स्थान या मकान है। इन सब कार्यों में सोने का - शयन या विश्राम करने का मुख्य स्थान है। इसीलिए इन्हें शय्या कहा गया है। अत एव जो साधुओं को निवास हेतु अपना स्थान देता है, वह शय्यातर के नाम से अभिहित होता है। - साधु शय्यातर की आज्ञा या स्वीकृति से ही उस द्वारा स्वेच्छापूर्वक दिए गए स्थान में निवास करते हैं। इस प्रकार जिसके स्थान में वे निवास करते हैं, उसके यहाँ भिक्षा हेतु जाना उन्हें नहीं कल्पता। इसलिए शय्यातर को भिक्षा के संदर्भ में परिहार्य - परिहर्त्तव्य या छोड़ने योग्य कहा गया है। इसी अर्थ में इन सूत्रों में इस शब्द का प्रयोग हुआ है।
शय्यातर के यहाँ भिक्षार्थ न जाने के संबंध में जो नियम रखा गया है, उसका बड़ा महत्त्वपूर्ण आशय है। शय्यातर अपना स्थान देकर साधुओं को उनके संयममय जीवन के निर्वाह में सहयोग करता है। वह उस द्वारा दी गई महत्त्वपूर्ण सेवा है। यद्यपि वह साधुओं को
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org