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. व्यवहार सूत्र - अष्टम उद्देशक
१४८ . *** ***************************************************** जत्थेव अण्णमण्णं पासेज्जा तत्थेव एवं वएज्जा - इमे भे अज्जो ! किं परिणाए? से य वएज्जा - परिणाए, तस्सेव पडिणिज्जाएयव्वे सिया, से य वएजा-णो परिणाए, तंणो अप्पणा परिभुंजेजा णो अण्णमण्णस्स दावए एगंते बहुफासुए थंडिल्ले परिट्टवेयव्वे सिया॥ २१५॥
_णिग्गंथस्स णं गामाणुगामं दूइज्जमाणस्स अण्णयरे उवगरणजाए परिब्भटे सिया, तं च केइ साहम्मिए पासेजा, कप्पइ से सागारकडं गहाय दूरमवि अद्धाणं परिवहित्तए जत्थेव अण्णमण्णं पासेज्जा तत्थेव एवं वएज्जा - इमे भे अज्जो ! किं परिणाए? सेय वएज्जा-परिणाए, तस्सेव पडिणिज्जाएयव्वे सिया, से य वएज्जा - णो परिणाए, तं णो अप्पणा परिभुंजेजा णो अण्णमण्णस्स दावए, एगते बहुफासुए थंडिल्ले परिट्टवेयव्वे सिया॥२१६॥
कठिन शब्दार्थ -- पिंडवायपडियाए - आहार-पानी लेने हेतु, अहालहुसए - यथालघुस्वक - अत्यन्त लघु या छोटा, परिब्भटे सिया - परिभ्रष्ट हो जाए - गिर जाए, सागारकडं - आगार सहित, गहाय - लेकर, परिणाए - परिज्ञात - जाना-पहचाना, पडिणिजाएयव्वे - प्रतिनिर्यातव्य - सौंपने योग्य या देने योग्य, परिभुजेज्जा - उपयोग में ले, दावए - दे, अण्णमण्णस्स - अन्य किसी के, एगते - एकान्त में, वियारभूमिं - विचारभूमि - उच्चारप्रस्रवण भूमि, विहारभूमि - स्वाध्यायादि भूमि, अण्णयरे - अन्यत्र - कोई एक, दूरमवि अद्धाणं - दूर मार्ग तक। - भावार्थ - २१४. कोई साधु गृहस्थ के घर में आहार-पानी लेने हेतु प्रवेश करे और वहाँ यदि उसका कोई छोटा उपकरण गिर जाए, उस गिरे हुए उपकरण को कोई दूसरा साधर्मिक साधु देखे तो, 'जिसका यह उपकरण है, उसे मैं लौटा दूंगा,' इस आगार - अपवाद या विकल्प के साथ उसे गृहीत कर ले, लेले और जहाँ अन्य साधु को देखे - दूसरा कोई साधु मिले तो वह उसे कहे - हे आर्य! क्या इस उपकरण को आप पहचानते हैं?'
वह कहे - 'हाँ, मैं इसे पहचानता हूँ, अर्थात् यह मेरा ही है' तो वह उसे सौंप दे - देदे। . यदि वह कहे - मैं इसे नहीं पहचानता तो वह न तो स्वयं अपने लिए उसका उपयोग करे और न दूसरे को ही दे, किन्तु एकान्त में अतिप्रासुक भूमि में उसे परठ दे।
२१५. किसी साधु का विचारभूमि या विहारभूमि में जाते समय कोई छोटा उपकरण गिर
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