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व्यवहार सूत्र - अ
१४२ xxxxxxkakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakkar
भाष्य, टब्बा आदि में तो 'अहं' का अर्थ दिन किया जाता है। तदनुसार मार्ग में थकान आ जाने के कारण अर्धादि कोस, कोस में विश्रान्ति के लिए रात भर रुकना पड़े तो तीन दिन भी लग सकते हैं। इसे भी दो कोस की सीमा के भीतर ही समझना चाहिए। इन दोनों अर्थों में से 'अहं' का संगत अर्थ तो विश्राम ही लगता है।
चौथे सूत्र का अर्थ भी इसी प्रकार समझना चाहिए। किन्तु वृद्धावस्था के कारण पाँच विश्रामों से शय्या संस्तारक ला सकता है। शेषकाल और चातुर्मास काल से वृद्धावास में विशेष रुकने की संभावना रहती है। अतः यहाँ पर पांच विश्राम बताए गये हैं। शेषकाल और चातुर्मास काल में जितनी दूरी से शय्या संस्तारक लाया जाता है। वृद्धावास में उससे अधिक दूरी से भी ला सकता है। इसलिए यहां पर 'दूरमवि अद्धाणं' ऐसा पाठ दिया है। किन्तु इसे भी दो कोस तक ही समझना चाहिए अर्थात् शेषकाल और चातुर्मास काल के लिए तो दो कोस के भीतर से और वृद्धावास के लिए दो कोस तक से शय्या संस्तारक ला सकता है।
एकाकी स्थविर के उपकरण रखने तथा भिक्षार्थ जाने का विधिक्रम - थेराणं थेरभूमिपत्ताणं कप्पइ दंडए वा भंडए वा छत्तए वा मत्तए वा लट्ठिया वा भिसे वा चेले वा चेलचिलिमिलिं वा चम्मे वा चम्मकोसे वा चम्मपलिच्छेयणए वा अविरहिए ओवासे ठवेत्ता गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा पविसित्तए वा णिक्खमित्तए वा, कप्पइ ण्हं संणियट्टचारीणं दोच्चं पि ओग्गहं अणुण्णवेत्ता परिहारं परिहरित्तए ॥२०७॥ ___कठिन शब्दार्थ - थेरभूमिपत्ताणं - स्थविरत्व प्राप्त, दंडए - दण्ड, भंडए - भाण्ड, छत्तए - छत्र, मत्तए - मात्रक - मल-मूत्र एवं कप हेतु प्रयोजनीय पात्र, लट्ठिया - विहार में सहारे के रूप में प्रयोजनीय लाठी, भिसे - उपवेशनपट्टिका - सहारा लेकर बैठने के लिए प्रयोग में आने वाली काठ की पट्टिका, चेले - वस्त्र - देह ढकने के लिए काम में आने वाली चद्दर या पछेवड़ी, चेलचिलिमिलिं - चिलमिलिका - कपड़े का पर्दा, चम्मे - सुई द्वारा कपड़े के टांका लगाते समय अंगुली की रक्षा के लिए प्रयोग में लिया जाने वाला चमड़े का अंगुलियक, चम्मकोसे - जहाँ अधिक कांटे हों, वहाँ चलते समय कांटों से बचाव के लिए पैरों में प्रयोग में लिया जाने वाला चमड़े का आवरक, चम्मपलिच्छेयणए - चर्मछेदनक-- पतले चमड़े को काटने का लकड़ी का उपकरण - लपेटने का चमड़े का टुकड़ा, अविरहिए
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