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व्यवहार सूत्र - सप्तम उद्देशक
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यद्यपि प्राणान्त हो जाने पर, आत्मा से वियुक्त - विरहित हो जाने पर तात्त्विक दृष्टि से शरीर का कोई महत्त्व नहीं रह जाता, किन्तु उसका यथावत् परिष्ठापन हो, इसे भी ध्यान में रखा जाना आवश्यक है। यह परंपरा है कि साधु के मृत शरीर को साधर्मिक साधुओं के द्वारा व्युत्सर्जित कर दिए जाने के बाद गृहस्थ उसे संभाल लेते हैं और सभी लौकिक क्रियाएँ करते हैं, जो उनका सांसारिक कार्य है। ___इस सूत्र में ऐसे प्रसंग का वर्णन है, यदि कोई एकाकी विहार करता हुआ साधु अकस्मात् मार्ग में दिवंगत हो जाए, वहाँ कोई गृहस्थ उपस्थित न हो, कोई साधर्मिक साधु संयोगवश वहाँ पहुँच जाए, उस स्थिति में वह उस मृत शरीर को यथाविधि अचित्त, सर्वथा प्रासुक स्थान में परिमार्जनपूर्वक परिष्ठापित करे, ऐसा कल्प्य है। ___उस साधु की उपयोग में लेने योग्य कोई वस्तुएँ हो तो परठने वाला साधु आचार्य आदि के सम्मुख उपस्थापित करने के आगार के साथ उन्हें ग्रहण करे फिर आचार्य आदि को दिखलाए और वे जैसी भी आज्ञा दें, तदनुसार उन वस्तुओं को अथवा उनमें से कतिपय को उपयोग के लिए स्वीकार करे।
. सूत्र में आये हुए ‘ण सागारिय मिति कटु' शब्दों का अर्थ प्राचीन परम्परा(धारणा) से इस प्रकार किया जाता है - 'यूका आदि न हो इस प्रकार प्रतिलेखन करके'।
परिहरणीय शय्यातर-विषयक निरुपण सागारियं उवस्सयं वकएणं पउंजेजा, से य वक्कइयं वएज्जा-इमंमि य इममि य ओवासे समणा णिग्गंथा परिवसंति, से सागारिए पारिहारिए, से य णो वएज्जा, वक्कइए वएज्जा से सागारिए पारिहारिए, दो वि ते वएज्जा दो वि सागारिय पारिहारिया।।१९७॥
सागारिए उवस्सयं विक्किणेजा, से य कइयं वएजा-इमंमि य इमंमि य ओवासे समणा णिग्गंथा परिवसंति, से सागारिए पारिहारिए, से य णो वएज्जा, कइए वएज्जा, से सागारिए पारिहारिए, दो वि ते वएजा, दो वि सागारिया पारिहारिया॥१९८॥
कठिन शब्दार्थ - उवस्सयं - उपाश्रय - रहने का मकान, वक्कएणं - अवक्रय - कुछ समय के लिए किराये पर देना, पउंजेज्जा - प्रयुक्त करे - किराये पर दे, वक्कइयं - अवक्रयिक - किरायेदार को, ओवासे - स्थान में, इमंमि इमंमि - इस-इस में, परिवसंति - निवास करते हैं - रहते हैं, पारिहारिए - परिहार्य या परिहर्त्तव्य - छोड़ने योग्य, विक्किणेज्जाविक्रय करे - बेचे, कइयं - क्रयी - क्रय करने वाला या खरीदने वाला।
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