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अट्ठमो उद्देसओ - अष्टम उद्देशक
साधुओं द्वारा शयन-स्थान-चयन-विधि । गाहा( गिह )उडु)दूपज्जोसविए, ताए गाहाए ताए पएसाए ताए उवासंतराए जमिणं जमिणं सेज्जासंथारगं लभेजा तमिणं तमिणं ममेव सिया, थेरा य से अणुजाणेजा, तस्सेव सिया, थेरा य से णो अणुजाणेज्जा, एवं से कप्पइ अहाराइणियाए सेज्जासंथारगं पडिग्गाहेत्तए॥२०३॥
कठिन शब्दार्थ - गाहा - गाथा - गृह या घर, स्थान, अडु)दू(उऊ) - ऋतु - वर्षा ऋतु के अतिरिक्त हेमन्त या ग्रीष्म ऋतु, पजोसविए - पर्युषित - ठहरने के लिए रहा हुआ, ताए - उस, गाहाए - घर में - घर के एक प्रकोष्ठ में, पएसाए - प्रदेश - विभाग में, उवासंतराए - अवकाशान्तर - दोनों के मध्यवर्ती स्थान में, जमिणं-जमिणं - जो - जो, सेजासंथारगं - शय्यासंस्तारक - शयन स्थान या पट्ट, सोने का आस्तरण, लभेजा - प्राप्त करे, तमिणं-तमिणं - उस-उस (स्थान को), ममेव - मेरे, अहाराझणियाए - यथारानिकता - ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप रत्नत्रय की अधिकता या दीक्षा-ज्येष्ठता के अनुसार।
भावार्थ - २०३. हेमन्त या ग्रीष्म ऋतु में कोई साधु किसी के घर में ठहरने हेतु रहा हो तो वह उस घर के किसी प्रकोष्ठ (कमरे) में, किसी विभाग में या दोनों के मध्यवर्ती स्थान में जो भी शयन स्थान अनुकूल प्रतीत हो "उसे मैं प्रतिगृहीत करूँ" ऐसा विचार करे।
- यदि स्थविर उसे वैसा करने की - वहाँ शयन करने की अनुज्ञा प्रदान करे तो वह उस स्थान को शयन हेतु प्रतिगृहीत करे।
स्थविर यदि अनुज्ञा न दे तो उसे रत्नाधिकता - दीक्षा-ज्येष्ठता के क्रम से शयन-स्थान प्रतिगृहीत करना कल्पता है।
. विवेचन - प्राकृत में गाहा (गाथा) शब्द गृह - घर के लिए विशेष रूप से प्रयुक्त हुआ है। घर का स्वामी गाहावड़ (गाथापति) शब्द द्वारा अभिहित हुआ है। उपासकदशांग सूत्र में भगवान् महावीर के आनंद आदि दश प्रमुख श्रावकों के लिए गाहावड़ - गाथापति शब्द का प्रयोग हुआ है।
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