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२७. केवल पुरुषों के आवास युक्त (पुरुष सागारिक) उपाश्रय में साधुओं का रहना
शास्त्रानुमोदित है ।
२८. निर्ग्रन्थिनियों को पुरुष सागारिक उपाश्रय में रहना कल्पनीय नहीं होता ।
२९. केवल स्त्री सागारिक उपाश्रय में साध्वियों का रहना कल्प्य कहा गया है।
बृहत्कल्प सूत्र प्रथम उद्देश
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विवेचन इस सूत्र में साधु-साध्वियों के उस उपाश्रय - स्थान में रहने के कल्पअकल्प की चर्चा है, जिसमें सागारिक गृहस्थ का आवास हो अथवा गृहस्थ के आभूषण, वस्त्र आदि साज सामान हो या मनोविनोद हेतु नृत्य, गीतादि के उपक्रम हों ।
चूर्णि एवं भाष्य में इस संबंध में विशद विवेचन प्राप्त होता है । वहाँ सागारिक के रूपोंद्रव्य सागारिक एवं भाव सागारिक की चर्चा आई है।
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जहाँ गृहस्थ एवं उनके साज समान हों, वह उनके अस्तित्व के कारण द्रव्यसागारिक है। आवास हेतु आने वालों के लिए वे भाव सागारिक हैं। क्योंकि उनके कारण उनमें तदनुरूप लौकिक, सांसारिक भावों का उद्गम हो सकता है। उनके भावों में सागारिकता - अनगारेतरसाधुत्वं विपरीत भाव का उद्गम होना आशंकित है। उसके विस्तार में व्याख्याकारों ने इतना और कहा है कि जिस उपाश्रय में स्त्रियों का या स्त्रीजनोचित साधन सामग्री रखी हो तो वह अपने आप में द्रव्य सागारिक एवं साधुओं के लिए भाव सागारिक है ।
इसी प्रकार जिसमें पुरुषों का आवास हो या पुरुषोचित साधन सामग्री हो, वह अपने आप में द्रव्य सागारिक एवं साध्वियों के लिए भाव सागारिक है क्योंकि वहाँ मनोभावना में वासनात्मक विकृति आशंकित है।
इन दोनों ही प्रकार के उपाश्रयों में साधु-साध्वियों का ठहरना वर्जित है। यह उत्सर्ग मार्ग है। यदि अन्य स्थान प्राप्य न हो तो, पुरुषावास युक्त या पुरुषोचित साधन-सामग्री युक्त उपाश्रय में साधुओं का रूकना अनिषिद्ध है - विहित है। इसी प्रकार केवल स्त्री आवास युक्त या स्त्रीजनोचित साधन-सामग्री युक्त स्थान में साध्वियों का प्रवास अप्रतिषिद्ध - कल्पनीय है ।
· यह अपवाद मार्ग । अपरिहार्य स्थिति में ही इसका सेवन किया जा सकता है। जिसका कारण यह है कि - समलिंगसंबद्ध सामग्री या व्यक्ति से विकारोत्पत्ति की आशंका कम रहती है।
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