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पारिहारिकों तथा अपारिहारिकों का पारस्परिक व्यवहार ******************************************************** भेद इस सूत्र में बताया गया है, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि मायारहित होकर की जाने वाली आलोचना ही भिक्षु के लिए उपादेय है।
यहाँ इतना और जान लेना चाहिए कि प्रतिसेवित दोष की जो आलोचना की जाती है, उसमें कोई अन्तर नहीं होता किन्तु आलोचना करने के साथ तद्गत भावों में उज्ज्वलता - अनुज्ज्वलता की दृष्टि से तारतम्य होता है। यहाँ जो मायापूर्वक आलोचना करने का वर्णन हुआ है, वह मानसिक कलमषता का सूचक है।
पारिहारिकों तथा अपारिहारिकों का पारस्परिक व्यवहार बहवे पारिहारिया बहवे अपारिहारिया इच्छेज्जा एगयओ अभिणिसेन्जं वा अभिणिसीहियं वा चेएत्तए, णो ण्हं कप्पइ थेरे अणापुच्छित्ता एगयओ अभिणिसेज्जं वा अभिणिसीहियं वा चेएत्तए, कप्पइ ण्हं थेरे आपुच्छित्ता एगयओ अभिणिसेज्जं वा अभिणिसीहियं वा चेएत्तए, थेरा य ण्हं से वियरेज्जा एव ण्हं कप्पड़ एगयओ अभिणिसेजं वा अभिणिसीहियं वा चेएत्तए, थेरा य ण्हं से णो वियरेज्जा एव गृहं णो कप्पड़ एगयओ अभिणिसेज्जं वा अभिणिसीहियं वा चेएत्तए, जो णं थेरेहिं अविइण्णे अभिणिसेज्जं वा अभिणिसीहियं वा चेइए, से संतरा छेए वा परिहारे वा॥२१॥
कठिन शब्दार्थ - इच्छेज्जा - इच्छा करे, एगयओ - एक साथ, अभिणिसेन्जं - . रहना, अभिणिसीहियं - बैठना, चेएत्तए - करना - क्रियान्वित करना, अणापुच्छित्ता - बिना पूछे, आपुच्छित्ता - पूछ कर, थेरा - स्थविर, वियरेज्जा - अनुज्ञा दें, संतरा छए - मर्यादा के उल्लंघन से दीक्षा-छेद, परिहारे वा - परिहार रूप तप विशेष।
भावार्थ - २१. बहुत से पारिहारिक तथा अपारिहारिक भिक्षु यदि एक साथ रहना या बैठना चाहें तो स्थविर को पूछे बिना उन्हें एक साथ रहना एवं बैठना नहीं कल्पता। स्थविर को पूछकर उन्हें एक साथ रहना तथा बैठना कल्पता है।
स्थविर यदि उन्हें वैसा करने की आज्ञा दें तो उन्हें एक साथ रहना एवं बैठना कल्पता है। स्थविर यदि उन्हें वैसा करने की आज्ञा न दें तो उन्हें एक साथ रहना तथा बैठना नहीं कल्पता।
- जो स्थविरों द्वारा आज्ञा न दिए जाने पर भी एक साथ रहें या बैठें तो उन्हें मर्यादा उल्लंघन के कारण दीक्षा-छेद. या परिहार रूप तप विशेष का प्रायश्चित्त आता है।
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