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तड़ओ उद्देसओ - तृतीय उद्देशक गणधारक- गणाग्रणी भिक्षु-विषयक विधान
भिक्खू य इच्छेज्जा गणं धारेत्तएं, भगवं च से अपलिच्छ ( ण्णे )ए, एवं णो से कप्पइ गणं धारेत्तए, भगवं च से पलिच्छण्णे, एवं से कप्पइ गणं धारेत्तए ॥ ७० ॥
भिक्खू य इच्छेज्जा गणं धारेत्तए णो से कप्पड़ थेरे अणापुच्छित्ता गणं धारेत्तए, कप्पड़ से थेरे आपुच्छित्ता गणं धारेत्तए, थेरा य से वियरेज्जा, एवं से कप्पड़ गणं राय से णो वियरेजा, एवं से णो कप्पइ गणं धारेत्तए, जण्णं थेरेहिं अविइण्णं गणं धारेज्जा, से संतरा छेओ वा परिहारो वा ( साहम्मिया उट्ठाए विहरंति त्थ णं तेसिं केइ छेओ वा परिहारो वा ) ॥ ७१ ॥
कठिन शब्दार्थ - धारेत्तए धारण करना, भगवं भगवान्, अपलिच्छपणे अपरिच्छन्न आचारांग आदि छेद पर्यन्त सूत्र ज्ञान रहित, पलिच्छण्णे - परिच्छन्न आचारांग आदि छेद पर्यन्त सूत्र ज्ञान युक्त, वियरेज्जा - अनुज्ञा या अनुमति दें, अविइण्णं - अनुमति या अनुज्ञा न दिए जाने पर, संतरा मर्यादा का उल्लंघन, उट्ठाए - उत्थापित उसकी अधीनता - प्रमुखता में संचरणशील ।
भावार्थ - ७०. कोई भिक्षु गण को धारण करना चाहे - गणाग्रणी या संघाटक प्रमुख का दायित्व - अधिकार प्राप्त करना चाहे, यदि वह आचारांग आदि सूत्र ज्ञान से रहित हो तो उसे ऐसा करना नहीं कल्पता । यदि वह आचारांग आदि सूत्र ज्ञान से युक्त हो - सुयोग्य हो तो उसे गणाग्रणी या संघाटक प्रमुख का दायित्व लेना कल्पता है।
७१. आचारांग आदि सूत्र ज्ञान युक्त, स्थविरों को पूछे बिना उनकी अनुमति नहीं कल्पता ।
सुयोग्य भिक्षु गण को धारण करना चाहे तो अनुज्ञा प्राप्त किए बिना गण को धारण करना
स्थविरों को पूछ कर - उनकी अनुमति - अनुज्ञा प्राप्त करके ही गण को धारण करना कल्पता है। स्थविर यदि उसे अनुमति प्रदान करें - दें तो उसे गण को धारण करना कल्पता है और स्थविर यदि अनुमति नहीं दें तो गण को धारण करना नहीं कल्पता ।
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