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स्थविर हेतु आचारप्रकल्प की पुनरावृत्ति का विधान kakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakaki
आचारप्रकल्प का विस्मृत हो जाना दोष है। इन सूत्रों में बाधक हेतु तथा प्रमाद के रूप में विस्मृति के दो कारणों का उल्लेख है। बाधक हेतु का तात्पर्य रुग्णता आदि ऐसी परिस्थितियाँ हैं, जिनमें साधु-साध्वियों को सूत्र पाठ की आवृत्ति करने में कठिनाई होती है या आवृत्ति - करना संभव नहीं होता, यह विवशतापूर्ण स्थिति है। आचारप्रकल्प को पुनः स्मरण - कंठस्थ .. करने का संकल्प कर, यथावत् रूप में स्मरण कर लेने से इस स्थिति का अपाकरण हो जाता है, कमी दूर हो जाती है।
___ प्रमाद का तात्पर्य अनवधानता, असावधानी या लापरवाही है, जो अक्षम्य अपराध है। इसीलिए वैसा व्यक्ति संघ में उच्च पदों का कभी अधिकारी नहीं हो सकता। यदि कोई साधु इस दोष का भागी हो तो वह जीवनभर के लिए आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद के योग्य नहीं होता। यदि साध्वियाँ इस दोष की भागिनी हों तो वह आजीवन प्रवर्तिनी या गणावच्छेदिनी (गणावच्छेदिका) पद की अधिकारिणी नहीं होती।
इन सूत्रों का आशय यह है कि जीवन में आचार के साथ-साथ ज्ञान भी आवश्यक है। ज्ञान को चक्षु एवं आचार को चरण कहा गया है। ज्ञान के आलोक में शुद्ध क्रिया उत्तरोत्तर गतिशीलता प्राप्त करती है। इसी कारण आचारप्रकल्प का अध्ययन, श्रमण-श्रमणियों को सर्वथा कण्ठाग्र, स्वायत्त रहे, यह आवश्यक है।
स्थविर हेतु आचारप्रकल्प की पुनरावृत्ति का विधान थेराणं थेरभूमिपत्ताणं आयारपकप्पे णामं अज्झयणे परिब्भटे सिया, कप्पइ तेसिं संठवेत्ताण वा असंठवेत्ताण वा आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा॥१४७॥
थेराणं थेरभूमिपत्ताणं आयारपकप्पे णामं अज्झयणे परिब्भटे सिया, कप्पइ तेसिं संणिसण्णाण वा संतुयट्टाण वा उत्ताणयाण वा पासिल्ल्याण वा आयारपकप्पं णाम अज्झयणं दोच्चं पि तच्चं पि पडिपुच्छित्तए वा पडिसारेत्तए वा॥१४८॥
कठिन शब्दार्थ - थेरभूमिपत्ताणं - स्थविरभूमिप्राप्त - वृद्धावस्था युक्त, संठवेत्ताणस्थापयितान - पुनः स्मरण, कण्ठस्थ करते हुए, संणिसण्णाण - सन्निषीधमान - बैठे हुए, संतुयाण - करवट लेते हुए या सोते हुए, उत्ताणयाण - उत्तानक - उत्तान आसन में सोये हुए या हृदय भाग को ऊपर कर सोये हुए, पासिल्लयाण - पार्श्वशयान - पार्श्व भाग से या
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