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सत्तमो उद्देसओ- सप्तम उद्देशक अन्य गण से आगत शबलाचार युक्त साध्वी को गण में लेने का विधि-निषेध
जे णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य संभोइया सिया, णो कप्पइ णिग्गंथीणं णिग्गंथे अणापुच्छित्ता णिग्गंथिं अण्णगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिण्णायारं संकिलिट्ठायारचित्तं तस्स ठाणस्स अणालोयावेत्ता जाव पायच्छित्तं अपडिवजावेत्ता पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसंवा अणुदिसंवा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा॥१७६॥ ___ जेणिग्गंथा य णिग्गंथीओ य संभोइया सिया, कप्पइ णिग्गंथीणं णिग्गंथे आपुच्छित्ता णिग्गंथिं अण्णगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिण्णायारं संकिलिट्ठायारचित्तं तस्स ठाणस्स आलोयावेत्ता जाव पायच्छित्तं पडिवजावेत्ता पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा 'उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उहिसित्तए वा धारेत्तए वा॥१७७॥
जे णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य संभोइया सिया, कप्पइ णिग्गंथाणं णिग्गंथीओ आपुच्छित्ता वा अणापुच्छित्ता वा णिग्गंथिं अण्णगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिण्णायारं संकिलिहायारचित्तं तस्स ठाणस्स आलोयावेत्ता जाव पायच्छित्तं पडिवज्जावेत्ता पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा, तं च णिग्गंथीओ णो इच्छेज्जा, सेवमेव णियं ठाणं॥१७८॥ . कठिन शब्दार्थ - संभोइया - सांभोगिक - उपधि आदि वस्तुओं के लेन-देन के पारस्परिक व्यवहार से संबद्ध, सिया - हो, सेवमेव - स्वयमेव - खुद ही, ठाणं - स्थान - गण या गच्छ।
भावार्थ - १७६. जो साधु एवं साध्वियाँ परस्पर उपधि आदि साधुजीवनोचित वस्तुओं के लेन-देन आदि के पारस्परिक व्यवहार से संबद्ध हों, किसी अन्य गण से आई हुई क्षताचार शबलाचार, भिन्नाचार एवं संक्लिष्टाचार युक्त साध्वी को वे स्वसंबद्ध साधुओं तथा साध्वियों
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