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१२१ . संबंध-विच्छेद-विषयक विधि-निषेध
rakattitik जे णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य संभोइया सिया, णो ण्हं कप्पइ णिग्गंथीणं पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए, कप्पइ ण्हं पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए, जत्थेव ताओ अप्पणो आयरियउवज्झाए पासेजा, तत्थेव एवं वएजा-अह णं भंते ! अमुगीए अजाए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पारोक्खं पाडिएक्कं संभोगं विसंभोगं करेमि, सा य से पडितप्पेज्जा एवं से णो कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए, सा य से णो पडितप्पेजा एवं से कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोगं करेत्तए॥१८॥
कठिन शब्दार्थ - पारोक्खं - परोक्ष - अनुपस्थित, पाडिएक्कं - प्रत्येक, विसंभोगंविसंभोग - पारस्परिक व्यवहार रहित, करेत्तए - करना, पच्चक्खं - प्रत्यक्ष, तुमाए सद्धिं - तुम्हारे साथ, इमम्मि कारणम्मि - इस कारण के होने पर, करेमि - करता हूँ, पड़ितप्पेज्जापरिताप करे, अमुगीए अजाए सद्धिं - अमुक साध्वी के साथ।
भावार्थ - १७९. जो साधु और साध्वियाँ पारस्परिक आवश्यक वस्तु विषयक लेन-देन आदि के व्यवहार से संबद्ध हों, उनमें किसी साधु को परोक्ष में सांभोगिक पारस्परिक लेन-देन आदि के व्यवहार को बंद कर विसांभोगिक करना - सांभोगिक व्यवहार से बहिष्कृत करना नहीं कल्पता। किन्तु प्रत्यक्ष में सांभोगिक व्यवहार बंद कर, उसे विसांभोगिक करना कल्पता है। . _____ जहाँ वे एक-दूसरे को देखें, मिलें तब इस प्रकार कहें कि हे आर्य! इस - अमुक कारण से मैं प्रत्यक्षतः तुम्हारे साथ सांभोगिक व्यवहार संबंध विच्छिन्न करता हूँ - तुम्हें विसांभोगिक करता हूँ। ___ इस प्रकार कहे जाने पर वह, जिसे विसांभोगिक किया जा रहा है, यदि परिताप - पश्चात्ताप करे तो प्रत्यक्षतः उसके साथ सांभोगिक व्यवहार बंद कर उसे विसांभोगिक करना नहीं कल्पता। यदि वह परिताप - पश्चात्ताप न करे तो प्रत्यक्षतः उसके साथ सांभोगिक व्यवहार बंद कर उसे विसांभोगिक करना कल्पता है। .. १८०. जो साधु और साध्वियाँ सांभोगिक पारस्परिक व्यवहारोपपन्न हो तो किसी साध्वी को प्रत्यक्षतः पारस्परिक व्यवहार विच्छिन्न कर विसांभोगिक करना नहीं कल्पता। किन्तु परोक्ष रूप में पारस्परिक व्यवहार विच्छिन्न कर विसांभोगिक करना कल्पता है।
जहाँ वह (साध्वी) अपने आचार्य, उपाध्याय को देखे, उससे मिले तो ऐसा कहे - हे
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