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१०५ स्वजनों के घर भिक्षा आदि हेतु जाने के संबंध में विधि-निषेध xxxxxxxxxxxxxxxxxaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaat
स्थविरों को पूछ कर ही पारिवारिकजनों के यहाँ दर्शन देने, भिक्षा लेने आदि हेतु जाना कल्पता है।
स्थविर यदि आज्ञा प्रदान करें तो उन्हें पारिवारिकजनों के यहाँ जाना कल्पता है। स्थविर यदि आज्ञा प्रदान न करें तो उन्हें पारिवारिकजनों के यहाँ जाना नहीं कल्पता। '
स्थविरों की आज्ञा प्राप्त हुए बिना जो पारिवारिकजनों के यहाँ जाता है, उसे मर्यादोल्लंघन रूप दोष के कारण दीक्षा-छेद या परिहार-तप रूप प्रायश्चित्त आता है।
१५३. अल्पश्रुत, अल्पआगम भिक्षु का एकाकी - अकेले पारिवारिकजनों के यहाँ जाना नहीं कल्पता।
१५४. बहुश्रुत, बहुआगमवेत्ता भिक्षु के साथ अपने पारिवारिकजनों के यहाँ जाना कल्पता है।
१५५. पारिवारिकजनों के यहाँ उसके - भिक्षु के जाने से पूर्व यदि चावल - भात रंधे हुए - पके हुए हों तथा दाल बाद में रंधी हो तो भिक्षु को चावल लेना कल्पता है, दाल लेना नहीं कल्पता।
१५६. भिक्षु के वहाँ जाने से पूर्व दाल रंधी हुई हो और चावल - भात बाद में रंधे हों तो उसको दाल लेना कल्पता है, चावल लेना नहीं कल्पता।
१५७. उसके वहाँ जाने से पूर्व दोनों ही - चावल एवं.दाल, रंधे हुए हों तो उसे दोनों - ही लेना कल्पता है।
१५८. दोनों ही - चावल तथा दाल, उसके वहाँ जाने के पश्चात् रंधे हों तो उसे दोनों ही लेना नहीं कल्पता।
१५९. उसके वहाँ जाने से पूर्व जो आहार पका हो, अग्निकाय से - चूल्हे से दूर रखा हो, उसे ही लेना कल्पता है।
१६०. उसके वहाँ जाने के पश्चात् जो आहार पका हो, चूल्हे आदि से दूर रखा हो तो . उसे लेना नहीं कल्पता। .
विवेचन - इन सूत्रों में भिक्खू (भिक्षु) शब्द के आग य (च) का प्रयोग हुआ है। 'च' शब्द और का वाचक है। व्याकरण में इसे संयोजक कहा जाता है। 'च' का प्रयोग होने के कारण इन सूत्रों में सूचित मर्यादाएँ भिक्षु - साधु के साथ-साथ भिक्षुणी - साध्वी पर भी
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