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सारांश यह है कि ब्रह्मचर्य से विचलित न होने का भाव श्रमण निर्ग्रन्थों में सदैव व्याप्त रहे, इस हेतु कष्ट साध्य प्रायश्चित्तों का प्रतिपादन कर उन्हें अब्रह्मचर्य की दिशा में जाने से निवारित करने का उद्देश्य यहाँ सन्निहित है।
अन्य गण से आगत सदोष साध्वी को गण में लेने का विधि-निषेध
अन्य गण से आगत सदोष साध्वी को गण में लेने का विधि-निषेध
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कप्पणिग्गंथा वा णिग्गंथीण वा णिग्गंथिं अण्णगणाओ आगयं खुयायारं • सबलायारं भिण्णायारं संकिलिट्ठायारचित्तं तस्स ठाणस्स अणालोयावेत्ता अपडिक्कमावेत्ता अणिंदावेत्ता अगरहावेत्ता अविउट्टावेत्ता अविसोहावेत्ता अकरणाए अणब्भुट्ठावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं अपडिवज्जावेत्ता पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १७४ ॥
णो कप्पड़ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा णिग्गंथं अण्णगणाओ आगयं खुयायारं जाव संकिलिट्ठायारं तस्स ठाणस्स अणालोयावेत्ता जाव अहारिहं पायच्छित्तं अपडिवज्जावेत्ता उवद्वावेत्तए वा संभुजित्तए वा संवसित्तए वा तस्स इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दित्तिए वा धारेत्तए वा ॥ १७५ ॥
[कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा णिग्गंथिं अण्णगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिण्णायारं संकिलिट्ठायारचित्तं तस्स ठाणस्स आलोयावेत्ता पडिक्कमावेत्ता जिंदावेत्ता गरहावेत्ता विउट्टावेत्ता विसोहावेत्ता अकरणाए अब्भुट्ठावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं पडिवज्जावेत्ता पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवद्वावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा०] त्ति बेमि ॥ ॥ ववहारस्स छट्ठो उद्देसओ समत्तो ॥ ६ ॥
कठिन शब्दार्थ - आगयं - आगत खण्डत आए हुए, खुयायारं क्षताचार आचार युक्त, सबलायारं - शबलाचार - दोष रूप धब्बों से विकृत आचार युक्त, भिण्णायारं-" भिन्नाचार अयथावत् या विपरीतं आचार युक्त संकिलिट्ठायारचित्तं - संक्लिष्टाचार चरित - क्रोध आदि कषायों से मलिन आचार युक्त, तस्स ठाणस्स उस स्थान से - दोष पूर्ण आचरण से, अणालोयावेत्ता - आलोचना कराए बिना, अपडिक्कमावेत्ता - अप्रतिक्रान्त
● इदमपि सत्रं नोपलभ्यते क्वचिदादर्शेष ।
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