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१०७ आचार्य, उपाध्याय एवं गणावच्छेदक पैद के गरिमानुरूप विशेष विधान
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तौर से औद्देशिक आहार-वर्जन के साथ जुड़ा है। औद्देशिक आहार लेना सावध है, क्योंकि मानसिक, वाचिक, कायिक तथा कृत, कारित, अनुमोदित रूप में साधु समस्त सावध कर्मों का त्याग किए हुए होते हैं। उनके उद्देश्य से जो आहार बना हो, उसमें अव्यक्त रूप में वे अनुमोदना के रूप में समाहित हो जाते हैं। जो आहार साधु या साध्वी के जाने से पूर्व पका हो, अग्निकाय से दूर रखा हो, वही साधु या साध्वी के लिए आदेय है, दूसरा नहीं। इस बात का साधु-साध्वी सदैव ध्यान रखें, जिससे उनका संयम निर्मल, उज्ज्वल बना रहे। आचार्य, उपाध्याय एवं गणावच्छेदक पद के गरिमानुरुप विशेष विधान
आयरियउवज्झायस्स गणंसि पंच अइसेसा पण्णत्ता, तंजहा -
(१) आयरियउवज्झाए अंतो उवस्सयस्स पाए णिगिझिय णिगिझिय पप्फोडेमाणे वा पमज्जेमाणे वा णो अ(णा)इक्कमइ ॥१६१॥
(२) आयरियउवज्झाए अंतो उवस्सयस्स उच्चारपासवणं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा णो अइक्कमइ॥१६२।।
(३) आयरियउवज्झाए पभू वेयावडियं इच्छा करेजा इच्छा णो करेज॥१६३॥
(४) आयरियउवज्झाए अंतो उवस्सयस्स एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे णो अइक्कमइ॥१६४॥
(५) आयरियउवझाए बाहिं उवस्सयस्स एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे णो अइक्कमइ॥१६५॥
गणावच्छेइयस्स णं गणंसि दो अइसेसा पण्णत्ता, तंजहा -
(१) गणावच्छेइए अंतो उवस्सयस्स एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे णो अइक्कमइ ॥१६६॥
(२) गणावच्छेइए बाहिं उवस्सयस्स एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे णो अइक्कमइ॥१६७॥
कठिन शब्दार्थ - गणंसि - गण - गच्छ में, अइसेसा - अतिशेष - वैशिष्ट्य या अतिशय, पण्णत्ता - प्रतिपादित हुए हैं - कहे गए हैं, तंजहा - तद्यथा - वे इस प्रकार हैं, अंतो - भीतर, उवस्सयस्स - उपाश्रय - आवास स्थान के, पाए - पैरों को, णिगिज्झिय -
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