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९१ . प्रवर्त्तिनी आदि के साथ विहरणशीला साध्वियों का संख्याक्रम kaxxxkakakakakakakakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkxxxaaa***********
१३४. हेमन्त एवं ग्रीष्म ऋतु में गणावच्छेदिनी को अपने अतिरिक्त तीन और अन्य साध्वियों को साथ लिए अर्थात् चार के रूप में विचरण करना कल्पता है।
१३५. वर्षावास में - चातुर्मास्य में प्रवर्तिनी को अपने अतिरिक्त दो अन्य साध्वियों को साथ लिए अर्थात् तीन के रूप में वास करना - रहना नहीं कल्पता।
१३६. वर्षावास - चातुर्मास्य में प्रवर्त्तिनी को अपने अतिरिक्त तीन अन्य साध्वियों को साथ लिए अर्थात् चार के रूप में वास करना - रहना कल्पता है।
१३७. वर्षावास - चातुर्मास्य में गणावच्छेदिनी को अपने अतिरिक्त तीन अन्य साध्वियों को साथ लिए अर्थात् चार के रूप में वास करना - रहना नहीं कल्पता। ...
१३८. वर्षावास - चातुर्मास्य में गणावच्छेदिनी को अपने अतिरिक्त चार अन्य साध्वियों को साथ लिए अर्थात् पाँच के रूप में वास करना - रहना कल्पता है।
१३९. हेमन्त एवं ग्रीष्म ऋतु में ग्राम, नगर, निगम एवं राजधानी में बहुत-सी प्रवर्तिनियों को अपनी-अपनी निश्रा में दो-दो साध्वियों को साथ लिए हुए अर्थात् तीन के रूप में तथा बहुत सी गणावच्छेदिनियों को अपनी-अपनी निश्रा में तीन-तीन साध्वियों को लिए हुए अर्थात् चार-चार के रूप में विचरण करना कल्पता है।
१४०. वर्षावास में ग्राम, नगर, निगम यावत् राजधानी में बहुत-सी प्रवर्त्तिनियों को अपनी-अपनी निश्रा में तीन-तीन साध्वियों को लिए हुए तथा बहुत-सी गणावच्छेदिनियों को अपनी-अपनी निश्रा में चार-चार साध्वियों को लिए वास करना - रहना कल्पता है।
विवेचन - साधु-समुदाय में जिस प्रकार अनुशासन, व्यवस्था, विकास आदि की समीचीनता की दृष्टि से प्रवर्तक और गणावच्छेदक के पद हैं, उसी प्रकार साध्वी-समुदाय में प्रवर्तिनी एवं गणावच्छेदिनी के पद हैं। साधु समुदाय में प्रवर्तक और गणावच्छेदक का जो दायित्व है, वैसा ही साध्वी-समुदाय में प्रवर्तिनी तथा गणावच्छेदिनी का है। ___इन सूत्रों में प्रवर्तिनी एवं गणावच्छेदिनी के विचरण तथा चातुर्मासिक प्रवास में सहवर्तिनी साध्वियों की संख्या के संबंध में निर्देश किया गया है। जहाँ सामान्य साध्वी को एक अन्य साध्वी को साथ लिए विचरने, चातुर्मासिक प्रवास करने का विधान है, वहाँ प्रवर्तिनी के लिए अपने अतिरिक्त दो अन्य साध्वियों को साथ लिए विचरने का तथा तीन अन्य साध्वियों को साथ लिए चातुर्मासिक प्रवास करने का विधान है। प्रवर्तिनी के पद के दायित्व और गरिमा की दृष्टि से ऐसा किया गया है।
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