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व्यवहार सूत्र - पंचम उद्देशक
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attradatak एक रात या दो रात से अधिक ठहरना नहीं कल्पता। जो साध्वी एक या दो रात से अधिक ठहरती है, वह मर्यादोल्लंघन रूप दोष के कारण दीक्षा-छेद या परिहार-तप रूप प्रायश्चित्त की भागिनी होती है।
१४२. वर्षावास में प्रवास करती हुई साध्वी, जिसको अग्रणिणी या प्रमुखा मानकर रह रही हो, उसका देहावसान हो जाए तो वहाँ अवशिष्ट अन्य साध्वी अग्रणिणी पद के योग्य हो तो उसे उस पद पर मनोनीत करना चाहिए। ___ यदि वहाँ अवशिष्ट अन्य साध्वी अग्रणिणी के पद योग्य न हो और अवशिष्ट साध्वी ने स्वयं भी अपना कल्प - निशीथ आदि का अध्ययन समाप्त न किया हो तो उसे मार्ग में एक-एक रात रुकते हुए जिस-जिस दिशा में अन्य साधर्मिणी साध्वियां विचरणशील हों, उस-उस दिशा में जाए।
मार्ग में उसे विहारवर्तित्व - धर्म-प्रसार आदि के लक्ष्य से ठहरना नहीं कल्पता। . रुग्णता आदि किसी विवशतापूर्ण कारण के होने से ठहरना कल्पता है।
रुग्णता आदि कारण के समाप्त होने पर यदि कोई चिकित्सक आदि विशिष्टजन कहें - हे आर्ये! एक या दो रात और ठहरो तो उसे एक या दो रात और ठहरना कल्पता है। किन्तु एक या दो रात से अधिक ठहरना नहीं कल्पता। जो साध्वी एक या दो रात से अधिक ठहरती है, वह मर्यादोल्लंघन रूप दोष के कारण दीक्षा-छेद या परिहार-तप रूप प्रायश्चित्त की भागिनी होती है।
- विवेचन - चौथे उद्देशक में ग्रामानुग्राम विहरणशील तथा वर्षावास में स्थित साधुओं के संदर्भ में अग्रणी-विषयक जो वर्णन आया है, वही वर्णन यहाँ ग्रामानुग्राम विहरणशील और वर्षावास में अवस्थित साध्वियों के संदर्भ में अग्रणिणी या अग्रगण्या के विषय में आया है। दोनों का आशय एक जैसा है।
. प्रवर्तिनी द्वारा निर्देशित पद: करणीयता पवत्तिणीय गिलायमाणी अण्णयरं वएजा-मए णं अज्जे ! कालगयाए समाणीए इयं समुक्कसियव्वा, सा य समुक्कसणारिहा समुक्कसियव्वा, सा य णो समुक्कसणारिहा णो समुक्कसियव्वा, अत्थि या इत्थ अण्णा काइ समुक्कसणारिहा सा समुक्कसियव्वा, णत्थि या इत्थ अण्णा काइ समुक्कसणारिहा सा चेव
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