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व्यवहार सूत्र - चतुर्थ उद्देशक
६८ watikAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA* कारणवत्तियं - रुग्णता आदि विशेष कारण से, तंसि कारणंसि - उस रोग आदि कारण के, णिट्ठियंसि - मिट जाने पर, संतरा - अपने द्वारा किए गए अपराध या दोष के कारण, पज्जोसविए - प्रवास करता हुआ - रहता हुआ भिक्षु। - भावार्थ - १०९. ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ भिक्षु, जिसे अग्रणी मानकर चले, यदि उस (अग्रणी) का देहावसान हो जाए तो अवशिष्ट भिक्षुओं में जो भिक्षु पद योग्य हो, उसे अग्रणी के रूप में मनोनीत करे।
यदि अन्य कोई भिक्षु उस पद के योग्य न हो और उसने स्वयं आचारकल्प का अध्ययन समाप्त न किया हो तो उसे रास्ते में एक-एक रात रुकते हुए, जिस-जिस दिशा में अन्य साधर्मिक भिक्षु विहरणशील हों उस-उस दिशा में जाना कल्पता है।
रास्ते में उसे विहरार्थ - धर्म-प्रसार आदि हेतु प्रवास करना - रुकना नहीं कल्पता। यदि बीमारी आदि कोई कारण हो जाए तो उसे अधिक ठहरना कल्पता है।
उस कारण के समाप्त हो जाने पर यदि चिकित्सक आदि कोई विशिष्ट व्यक्ति कहे कि आर्य! एक या दो रात और ठहरो तो उसे एक या दो रात और ठहरना कल्पता है, किन्तु एक या दो रात से अधिक ठहरना नहीं कल्पता।
जो उसके बाद भी एक या दो रात से अधिक ठहरता है, वह स्वकृत अपराध - मर्यादोल्लंघन के कारण दीक्षा-छेद या परिहार-तप रूप प्रायश्चित्त का भागी होता है। . .११०. वर्षावास में प्रवासित - रहा हुआ भिक्षु, जिसे अग्रगण्य - प्रमुख मानकर रह रहा हो, यदि उसका देहावसान हो जाए तो अवशिष्ट भिक्षुओं में जो भिक्षु पद योग्य हो, उसे अग्रणी के रूप में मनोनीत करे। ____ यदि अन्य कोई भिक्षु उस पद के योग्य न हो तथा उसने स्वयं आचारकल्प का अध्ययन समाप्त न किया हो तो उसे रास्ते में एक-एक रात रुकते हुए, जिस-जिस दिशा में अन्य साधर्मिक भिक्षु विहरणशील हों, उस-उस दिशा में जाना कल्पता है।
रास्ते में उसे विहरार्थ - धर्म-प्रसार आदि हेतु प्रवास करना - रुकना नहीं कल्पता। यदि बीमारी आदि कोई कारण हो जाए तो उसे अधिक ठहरना कल्पता है।
उस कारण के समाप्त हो जाने पर यदि चिकित्सक आदि कोई विशिष्ट व्यक्ति कहे कि आर्य! एक या दो रात और ठहरो तो उसे एक या दो रात और ठहरना कल्पता है,किन्तु एक या दो रात से अधिक ठहरना नहीं कल्पता। . .
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